नई दिल्ली: उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति की एक पूरी प्रक्रिया है जिसका उल्लेख भारतीय संविधान में किया गया है। नियुक्ति के साथ न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति की भी प्रक्रिया बताई गई है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, दोनों के न्यायाधीश तब तक कार्यरत रहते हैं जब तक उनका रिटायरमेंट नहीं हो जाता है।
कुछ ऐसी भी परिस्थितियां होती हैं जिनमें अपने कार्यकाल के पूरा होने से पहले एक न्यायाधीश इस्तीफा दे देते हैं। संविधान में वो कौनसे प्रावधान हैं, जिनके तहत एक सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज रेजिग्नेशन दे सकते हैं, आइए जानते हैं...
Supreme Court के न्यायाधीश कैसे दे सकते हैं इस्तीफा?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को अगर इस्तीफा देना होता है, तो इसकी प्रक्रिया का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 124 (Article 124 of The Constitution of India) में किया गया है जिसका शीर्षक 'उच्चतम न्यायालय की स्थापना और संघटन' (Establishment and Constitution of Supreme Court) है।
इस अनुच्छेद के दूसरे खंड में यह बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के हर जज को राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद नियुक्त किया जाता है और उनकी रिटायरमेंट एज 65 वर्ष है। इसी खंड के पार्ट (a) के अनुसार एक न्यायाधीश अगर चाहें तो राष्ट्रपति को लिखित रूप में अपना इस्तीफा दे सकते हैं।
High Court के जज का रेजिग्नेशन प्रॉसेस
भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 (Article 217 of The Constitution of India) में बताया गया है कि एक हाईकोर्ट जज किस तरह रिजाइन कर सकते हैं; संविधान के इस अनुच्छेद का शीर्षक 'उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद की नियुक्ति एवं शर्तें' (Appointment and conditions of the office of a Judge of a High Court) है।
अनुच्छेद 217 के पहले खंड में बताया गया है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति की उम्र 62 साल होती है, जो सुप्रीम कोर्ट जज से तीन साल कम है। बता दें कि एक हाईकोर्ट जज भी देश के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।
बंबई उच्च न्यायालय के Justice Rohit B Deo ने किया रिजाइन
आपको बता दें कि बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ (Nagpur Bench of the Bombay High Court) के न्यायाधीश रोहित बी देव (Justice Rohit B Deo) ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है जिसका खुलासा उन्होंने आज, 4 अगस्त, 2023 को ओपन कोर्ट में किया है। उन्होंने सभी के सामने कहा कि उनके मन में किसी के प्रति कोई द्वेष की भवन नहीं है, साथ ही, उन्होंने उन सभी से माफी मांगी जिनका उन्होंने अनजाने में दिल दुखाया हो।
जस्टिस रोहित बी देव उस पीठ का हिस्सा थे जिन्होंने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा निलंबित किए जाने से पहले प्रोफेसर जीएन साईबाबा को माओवादी लिंक मामले में बरी कर दिया था। हाल ही में जस्टिस देव की अगुवाई वाली एक पीठ ने समृद्धि एक्सप्रेसवे परियोजना पर काम करने वाले ठेकेदारों के खिलाफ शुरू की गई दंडात्मक कार्यवाही को रद्द करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को अधिकार देने वाले एक सरकारी प्रस्ताव के प्रभाव पर रोक लगाई थी।
बता दें कि जस्टिस रोहित बी देव को साल 2017 में बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और उनका रिटायरमेंट 4 दिसंबर, 2025 का था।