नई दिल्ली: भारतीय फ़िल्मों में आपने अक्सर देखा होगा कि हीरो, जो की वकील नहीं है, फिर भी कोर्ट में वकालत करते हुए दिखाया जाता है. लेकिन क्या वास्तविक अदालतों में ऐसा संभव है कि देश का कोई भी नागरिक पैरवी कर सकता है.
हमारे देश के कानून के अनुसार ऐसा संभव है लेकिन यह सिर्फ एक व्यक्ति खुद के केस में ही कर जा सकता है. लेकिन अगर आप किसी और के केस में पैरवी करना चाहते तो आपको वकील करना ही होगा. देश का कोई भी नागरिक स्वयं के केस में खुद पैरवी करने के लिए अदालत के समक्ष निवेदन कर सकता है. कोर्ट की अनुमति मिलने के बाद ही अपनी पैरवी की जा सकती है.
एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 32 के तहत कोई भी व्यक्ति अपना केस अदालत में लड़ सकता है.कोर्ट में जज के सामने कोई भी उपस्थित होकर दलील दे सकता है चाहे वह वकील हो या नहीं. ऐसा करने लिए वकालत डिग्री की जरुरत नहीं क्योंकि संविधान में हर व्यक्ति को अपने अधिकारों की रक्षा करने का अधिकार दिया गया है.
कोर्ट में खुद की पैरवी करने के लिए सर्वप्रथम अदालत के समक्ष प्रार्थना पत्र पेश करना होता है. कोर्ट में निवेदन के उपरांत जज अपना केस लड़ने के लिए इजाज़त दे सकतें हैं और मना भी कर सकते हैं, यह पूरी तरह जज के विवेक पर निर्भर करता है. अगर जज को लगे की निवेदन करने वाला व्यक्ति खुद का केस नहीं लड़ पाएगा तो उसे सरकारी वकील भी दिया जा सकता है.
आपको बता दे कि सुब्रमण्यम स्वामी वकील ना होते हुए भी कई बार खुद का केस लड़ चुके हैं. बिना वकालत पढ़े इन्होंने राम जेठमलानी, कपिल सिब्बल जैसे कई वकीलों के सामने बहस की है. हालांकि, उस समय अधिकतर उनकी वकील पत्नी और उनकी लीगल टीम उनके साथ रहती है.
देशभर की अदालतों में ऐसे हजारों केस है जहां पर व्यक्ति ने खुद ही अपने केस में पैरवी की है.