नई दिल्ली: कानून के नजर में सबूत (Evidence) का बहुत महत्व है. किसी केस में सबूत होने या ना होने से बहुत फर्क पड़ता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपका अच्छा चरित्र और स्वभाव एक सबूत के रूप आपके हित में हो सकता है, यानि कि आपका अच्छा काम आपके खिलाफ चल रहे केस में मददगार साबित हो सकता है और आपका बुरा चरित्र आपके खिलाफ जा सकता है कोर्ट में एक सबूत के तौर पर.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act),1872 की धारा 53 और 54 में यह बताया गया है कि किसी के अच्छे और बुरे चरित्र के सबूत को कब और कैसे प्रासंगिक माना जा सकता है.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53 में यह बताया गया है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ अदालत में आपराधिक मामले की सुनवाई हो रही हो उसके अच्छे चरित्र के सबूत को भी अदालत प्रासंगिक मान सकती है. यनि अगर किसी अभियुक्त के खिलाफ दंडात्मक मामले की सुनवाई अदालत में हो रही है तो उस दौरान जज उस अभियुक्त के पुराने अच्छे चरित्र को साबित करने के लिए दिए गए सबूत को प्रासंगिक मान सकते हैं और अपना फैसला सुना सकते हैं.
जैसे- अदालत में श्याम के खिलाफ हत्या का केस चल रहा है. उस दौरान जज श्याम के बारे में ये जांच करवाते हैं कि श्याम का चरित्र कैसा था. जांच में ये सबूत मिलता है कि श्याम लोगों की मदद करता है, समाज सेवा भी करता है, पढ़ाई लिखाई करने वाला लड़का है, सभी के साथ अच्छा बर्ताव करता है. वो किसी तरह का कोई नशा नहीं करता है, पहले किसी भी अपराध में उसका कोई नाम नहीं आया है. तो ऐसे में जज उसके अच्छे चरित्र को एक प्रासंगिक सबूत मान सकते हैं. उसके इस चरित्र को साबित करने के लिए जज उसके Teacher या उसके पड़ोसी को बुला सकते हैं.
जैसा की भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53 में बताया गया है कि अच्छे चरित्र के सबूत को प्रासंगिक मान सकते हैं, लेकिन धारा 54 में ऐसा नहीं है. इस धारा में यह बताया गया है कि अभियुक्त के पुराने बुरे चरित्र का सबूत कब प्रासंगिक माना जा सकता है और कब नहीं.
इसके अनुसार किसी आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान अभियुक्त के पुराने बुरे चरित्र को साबित करने के लिए पेश किया गया सबूत तब अप्रासंगिक (Irrelevant) माना जाएगा जब अभियुक्त की ओर से खुद अपने अच्छे चरित्र का प्रमाण न दिया जाए. जब यह प्रमाण दिया जाएगा तब उसका पुराना बुरा चरित्र के खिलाफ पेश सबूत प्रासंगिक हो सकता है.
इसे इस तरह से समझते हैं जैसे - राकेश के खिलाफ रेप का केस चल रहा है. इस केस की सुनवाई के दौरान अगर आरोप लगाने वाला पक्ष ये सबूत अदालत के सामने पेश करता है कि राकेश पहले मोहल्ले की लड़कियों को छेड़ता था. इस सबूत को अदलात तब तक अप्रासंगिक मानेगी जब तक कि राकेश पहले खुद नहीं सबूत देता है कि वो एक अच्छा चरित्र वाला व्यक्ति है.
इस धारा में दो स्पष्टीकरण किए गए हैं;
1. यह धारा उन मामलों में लागू नहीं हो सकता जिसमें अभियुक्त का बुरा चरित्र ही उस मामले का सच हो.
2. किसी व्यक्ति का पुराना बुरा चरित्र एक प्रासंगिक सबूत हो सकता है. कैसे हो सकता है इसके बारे में हमने आपको धारा 54 के तहत बता दिया है.