नई दिल्ली: कई बार अदालत द्वारा एक व्यक्ति को किसी जमीन की बोली लगाने पर रोक लगा दिया जाता है. ऐसे में कुछ लोग अपने नाम पर ना सही अपने किसी रिश्तेदार के नाम पर या किसी दोस्त के लिए किसी जमीन की बोली लगाने वाली प्रक्रिया में भाग लेते हैं.
लोगों का मानना है कि कानून के द्वारा उस व्यक्ति पर रोक लगाया गया है तो वो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की तरफ से बोली तो लगा ही सकता है लेकिन ऐसा करना कानून के नजर में अपराध है और इसके तहत ऐसे व्यक्ति को सजा भी हो सकती है. IPC की धारा 185 में ऐसे ही अपराध के बारे में बताया गया.
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) 1860 की धारा ( Section) 185 के तहत यह बताया गया है कि कोई भी लोक सेवक सरकार के अधीन कार्य करता है और उन आदेशों का पालन करने के लिए वह बाध्य होता है. अगर उन आदेशों के पालन होने में कोई बाधा बनता है तो वह अपराधी माना जाएगा.
कई बार अदालत किसी लोक सेवक को किसी अवैध जमीन को अपने नियंत्रण में लेने के लिए आदेश देती है. उसके बाद उस जमीन को बेचने के लिए भी आदेश देती है. यहां उस जमीन को वही व्यक्ति खरीद सकता है जिस पर किसी भी तरह का कोई प्रतिबंध अदालत की ओर से ना लगा हो.
तो इस धारा के अनुसार, लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना यानि वह व्यक्ति जिस पर कानून ने प्रतिबंध लगा रखा है उस जमीन की बोली लगाने के लिए जो लोक सेवक के द्वारा बेची जा रही हो. अगर वह व्यक्ति अवैध रुप से अपने लिए या किसी और के लिए जमीन की बोली लगाएगा तो वह दोषी माना जाएगा. जिसके लिए वह सजा का पात्र माना जाएगा.
अगर कोई व्यक्ति इस धारा में बताए गए अपराध को अंजाम देता है, तो वह सजा का पात्र माना जाएगा. जिसके लिए दोषी को कारावास की सजा दी जा सकती है जिसकी अवधि एक महीने हो सकती है, या फिर जुर्माना लगाया जा सकता है जो दो सौ रुपये हो सकता है या फिर अगर अदालत को लगा तो वह अपराध को देखते हुए दोनों ही सजा से दोषी को दंडित कर सकता है.