मिसलिडिंग विज्ञापन यानि लोगों को गुमराह या भ्रमित करनेवाले विज्ञापन को लेकर सरकार बड़ी सख्त है. विज्ञापन मामले में जब सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को फटकारा था, तब कई लोगों ने आश्चर्य कि होगा कि जिन विज्ञापनों पर वे आंख मूंदकर भरोसा कर लेते हैं, असल में वह तो फैक्ट को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया था. लोग अब इसे लेकर काफी सजग हो गए है. ये मामला शादी डॉट कॉम के विज्ञापन से जुड़ा है, जिसके भ्रामक होने का दावा करते हुए दूसरी साइट मेट्रोमोनियल डॉट कॉम ने अदालत का रूख किया. अदालत ने क्या फैसला सुनाया और सुनवाई के दौरान क्या कहा, यह बहुत जरूरी है.
हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट ने एक शादी-विवाह के कराने के कारोबार में जुड़ी कंपनी शादी डॉट कॉम (Shaadi.com) के एक विज्ञापन को भ्रामक और धोखाधड़ी से पूर्ण करार दिया है. इस विज्ञापन में 30 दिनों के भीतर दुल्हन या दूल्हा नहीं मिलने पर पैसे वापस करने की गारंटी का दावा किया गया था. जस्टिस आरएमटी टीका रामन ने कहा कि इस ऑफर की वास्तविक शर्तें विज्ञापन में दिए गए वादे के 'विपरीत' हैं और इन्हें छोटे अक्षरों में छिपाया गया है.
वास्तव में, पैसे वापस करने की गारंटी ग्राहक को तब दी जाती है जब एक प्रीमियम सदस्य कम से कम 10 रिक्वेस्ट भेजता है और उसे पहले 30 दिनों में उसका एक भी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नहीं किया जाता है. अदालत को वास्तवितक एड में जानकारी छिपाने को लेकर Matrimony.com द्वारा दायर अंतरिम निषेधाज्ञा आवेदन को स्वीकार कर लिया.
अदालत ने कहा,
"यह विज्ञापन Cable Television Networks Rules, 1994 का उल्लंघन कर रहा है."
Matrimony.com ने अदालत में दावा किया कि Shaadi.com के विज्ञापन ने भारत में विज्ञापन सामग्री के आत्म-नियमन के कोड का उल्लंघन किया है. कंपनी ने दावा किया कि Shaadi.com ने जानबूझकर अपने सेवाओं के बारे में झूठे दावे किए हैं, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं का शोषण करना है. कार्यवाही के दौरान अदालत को बताया गया कि Advertising Standards Council of India (ASCI) को भी इस विज्ञापन के खिलाफ शिकायत मिली थी. ASCI ने स्पष्ट रूप से कहा कि ये विज्ञापन भ्रामक हैं और उपभोक्ताओं में व्यापक निराशा पैदा कर सकते हैं. ASCI ने Shaadi.com से विज्ञापन को संशोधित या वापस लेने का आग्रह किया, लेकिन Shaadi.com की ओर से कोई अनुरूप कार्रवाई नहीं की गई है.
दूसरी ओर, Shaadi.com ने कहा कि यह आवेदन बिना किसी कारण के दायर किया है और यह उनके खिलाफ एक अवैध प्रयास था. उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्होंने विज्ञापन के साथ एक टर्म्स प्रदान किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पैसे वापस करने की गारंटी केवल तभी लागू होती है जब प्रीमियम सदस्य ने कम से कम 10 रिक्वेस्ट भेजी हों.
मद्रास हाई कोर्ट ने स्वीकार किया कि ASCI का निर्णय केवल सिफारिशी था और यह बाध्यकारी नहीं था. फिर भी, न्यायालय ने यह भी कहा कि Shaadi.com को जनता को भ्रामक विज्ञापनों के माध्यम से धोखा नहीं देना चाहिए. न्यायालय ने यह भी नोट किया कि Shaadi.com द्वारा दिया गया अस्वीकरण केवल एक व्यर्थ प्रयास था, क्योंकि विज्ञापन के दौरान औसत व्यक्ति के लिए दो लंबे वाक्यों को पढ़ना असंभव है.
अदालत ने यह भी कहा कि Shaadi.com द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1201 रिफंड अनुरोधों को संसाधित किया गया है, जिसका मतलब था कि 1000 से अधिक लोग पहले ही इस विज्ञापन से धोखा खा चुके थे.
मद्रास हाई कोर्ट ने विज्ञापन को भ्रामक और पैसे वापस करने की गारंटी का झूठा पाते हुए विज्ञापन पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी है.
Case Title: मैट्रिमोनी.कॉम लिमिटेड बनाम पीपल इंटरएक्टिव (आई) प्राइवेट लिमिटेड (Matrimony.com Ltd v. People Interactive (I) Pvt Ltd)