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क्या घरेलू हिंसा के मामलों में रिश्तेदारों की 'चुप्पी' अपराध है? सुप्रीम कोर्ट ने बता दिया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा के आरोपी के परिवार के सदस्यों को केवल इसलिए आरोपी नहीं बनाया जा सकता क्योंकि उन्होंने शिकायतकर्ता की सहायता नहीं की. कोर्ट ने कहा कि परिवार के सदस्यों की चुप्पी या मदद न करना स्वयं में एक अपराध नहीं है जब तक कि उनके खिलाफ विशेष आरोप न लगाए जाएं.

Written by Satyam Kumar Published : February 7, 2025 4:56 PM IST

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घरेलू हिंसा का मामला

भारतीय अदालत ने कई मौकों पर कहा है कि घरेलू हिंसा के मामले में रिश्तेदारों को बेवजह ही शामिल किया जाता है. आज सुप्रीम कोर्ट ने घरेलु हिंसा के मामले में रिश्तेदारों को राहत दिया है.

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रिश्तेदारों के खिलाफ मुकदमा

इस मामले में रिश्तेदारों का नाम एफआईआर में पीड़िता की मदद करने पर शामिल किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस पहलु पर भी अपना फैसला सुनाया है.

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सुप्रीम कोर्ट

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रिश्तेदारों के मदद ना करने पर FIR

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि परिवार के सदस्यों की चुप्पी को अपराध नहीं माना जा सकता जब तक कि उनके खिलाफ कोई विशेष आरोप न हो.

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घरेलु हिंसा को संभालने की जरूरत

हालांकि, अदालत ने जोर देकर कहा कि घरेलू हिंसा के मामलों को अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ संभालने की आवश्यकता है, क्योंकि ये अपराध आमतौर पर चार दीवारों के भीतर होते हैं, इसलिए प्रत्यक्ष सबूत प्राप्त करना कठिन हो सकता है.

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रिश्तेदारों के खिलाफ आरोप 'वैध'

कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपों की वास्तविकता और विशिष्टता का आकलन करना आवश्यक है, ताकि यह तय किया जा सके कि क्या ये आरोप परिवार के सदस्यों के खिलाफ वैध हैं.

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घरेलु हिंसा मामले में SC का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त टिप्पणी, भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (क्रूरता) और 506 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धाराओं 3 और 4 के तहत से जुड़े मामले में आई.

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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

इससे पहले, तेलंगाना हाई कोर्ट ने पहले मुख्य आरोपी की मौसी और चचेरे भाई के खिलाफ कार्यवाही को खारिज करने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले को चुनौती दी गई है.