
तलाक के बाद गुजारा भत्ता
क्या तलाक या इद्दत पीरियड समाप्त होने के बाद मुस्लिम महिलाओं का गुजारा-भत्ता पाने का अधिकार है? इसी विषय से जुड़ा मामला पटना हाई कोर्ट के सामने आया, जिसमें अदालत को तलाक के बाद मुस्लिम महिला के रखरखाव के अधिकार को तय करना था.

2007 में निकाह
याचिकाकर्ता पत्नी की शादी 2007 में इस्लामी रीति-रिवाजों से हुई थी और उनकी एक बेटी भी है. पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति और ससुराल वाले अतिरिक्त दहेज की मांग कर रहे थे और उसके साथ क्रूरता की गई.

क्रूरता करने का दावा
बाद में उसे वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया गया, जिसे लेकर उसने पति के खिलाफ धारा 498A आईपीसी के तहत शिकायत भी दर्ज कराई. पत्नी ने पति पर आरोप लगाया कि वह मुंबई में एक बुटीक चलाता है और महीने में ₹30,000 कमाता है. उन्होंने अपनी और अपनी बेटी के लिए ₹20,000 प्रति माह भरण-पोषण की मांग की.

पति ने दिया तलाक
पति ने क्रूरता और दहेज के आरोपों का खंडन किया और कहा कि पत्नी दूसरे पुरुष के साथ अवैध संबंध रख रही थी, इसलिए उसने 2012 में पंचायत में तीन तलाक देकर पत्नी को तलाक दिया.

1500 का गुजारा-भत्ता
फैमिली कोर्ट ने पत्नी को ₹1,500 प्रति माह भरण-पोषण अवार्ड किया और ₹5,000 की न्यायालयी लागत दी, लेकिन बेटी के भरण-पोषण के लिए कोई प्रावधान नहीं किया. इस फैसले को पत्नी ने पटना हाई कोर्ट में इस निर्णय को चुनौती देते हुए कहा कि भरण-पोषण की राशि अपर्याप्त है और बेटी के लिए कोई भरण-पोषण नहीं दिया गया है.

पटना हाई कोर्ट का फैसला अहम
पटना हाई कोर्ट ने डैनियल लतीफी मामले और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए कहा कि अगर तलाकशुदा मुस्लिम महिला के पूर्व पति ने इद्दत अवधि (IDDAT Period) या उसके बाद उसके जीवनयापन के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किया है, तो वह सीआरपीसी की धारा 125 तहत गुजारा भत्ता पाने का अधिकार रखती है.

तलाक के बाद भी मिलेगा गुजारा-भत्ता
पटना हाई कोर्ट ने पत्नी और उसकी नाबालिग बेटी दोनों को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. पटना हाई कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उपलब्ध राहत की अधिकारी है, और वह तलाक के बाद भी गुजारा-भत्ता पाने का अधिकार रखती है.

अनैतिक आचरण के सबूत नहीं
पति की आर्थिक स्थिति और उसके अन्य आश्रितों (बुजुर्ग माता-पिता और दूसरी पत्नी) को ध्यान में रखते हुए, हाई कोर्ट ने पति को पत्नी और बेटी प्रत्येक को 2,000 रुपये प्रति माह, कुल 4,000 रुपये प्रति महीने देने का निर्देश दिया. वहीं पटना हाई कोर्ट ने पाया कि पत्नी के अनैतिक आचरण का कोई ठोस सबूत नहीं है.

मुस्लिम महिला को अधिकार
जस्टिस जितेंद्र कुमार ने अपने आदेश में कहा कि यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि 1986 का अधिनियम होने के बावजूद, एक मुस्लिम पत्नी को अपने पति से भरण-पोषण का हक है यदि वह अपने जीवनयापन के लिए सक्षम नहीं है.