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किन दावों के आधार पर प्लेसेस ऑफ वार्शिप एक्ट, 1991 को दी गई चुनौती?

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने उन पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है, जिनकी जगह पर जबरन मस्ज़िद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे.

Written by Satyam Kumar Published : December 16, 2024 8:23 PM IST

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धार्मिक स्थलों के चरित्र परिवर्तन पर रोक

प्लेसेस ऑफ वार्शिप एक्ट, 1991 में बना यह कानून कहता है कि देश में धार्मिक स्थलों में वही स्थिति बनाई रखी जाए, जो आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को थी, उसमे बदलाव नहीं किया जा सकता.

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दावे का अधिकार

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने उन पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है,

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जबरन बनाए गए मस्जिद

जिनकी जगह पर जबरन मस्ज़िद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे.

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न्याय पाने का अधिकार

साथ ही यह कानून न्याय पाने के लिए कोर्ट आने के अधिकार से वंचित करता मौलिक अधिकार का हनन है.

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धार्मिक स्थलों के परिवर्तन

बता दें कि वार्शिप एक्ट की धारा 3, आजादी के बाद से धार्मिक स्थलों के परिवर्तन पर रोक लगाता है,

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अदालती सुनवाई पर रोक

साथ धारा 4, ऐसे मामलों में अदालतों की सुनवाई के अधिकार को प्रतिबंधित करता है.

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बरकरार रहे वार्शिप एक्ट

वहीं, जमीयत उलेमा ए हिंद ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि अधिनियम को सख्ती से अनुपालन कराने की मांग की है.