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Divorce की अर्जी Kerala HC ने स्वीकार किया, जब पत्नी ने पति पर आरोप लगाया, ना आगे पढ़ने दिया ना जीवनसाथी होने का सुख दिया

केरल हाई कोर्ट ने पत्नी के दावे को सही माना कि उसके पति ने वैवाहिक जीवन और शारीरिक संबंधों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और केवल धार्मिक गतिविधियों में लगा रहा.

Written by Satyam Kumar Published : March 31, 2025 2:41 PM IST

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हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia)

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के अंतर्गत मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक मांगने के प्रावधानों का जिक्र है, जिसमें वैवाहिक कर्तव्यों की लगातार उपेक्षा, स्नेह की कमी और बिना किसी वैध कारण के वैवाहिक अधिकारों से वंचित करना है जिससे जीवनसाथी को गंभीर मानसिक पीड़ा हुई हो. यह मुकदमा भी कुछ ऐसा ही है. आइये जानते हैं...

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विवाह का टूटना

मामले में दंपति 2016 में विवाह हुआ था, लेकिन शादी का संबंध धीरे-धीरे तनावपूर्ण हो गया. पत्नी ने दावा किया कि इस तनाव की वजह पति का अत्यधिक धार्मिक प्रवृति को होना और उसमें यौन संबंध या बच्चों की इच्छा का ना होना था.

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वैवाहिक संबंधों में रूचि नहीं

पत्नी ने कहा कि जब पति काम से लौटता था, तो उसकी रुचि केवल मंदिर और आश्रम जाने में होती थी. उसने यह भी कहा कि उसे भी ऐसा करने के लिए मजबूर किया. इसके अलावे पति ने उसे आगे पढ़ने से भी रोका.

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पति की उदासीनता

इस मामले में, पति की उदासीनता और धार्मिक जीवनशैली को थोपने के कारण पत्नी को मानसिक पीड़ा हुई, जिसके चलते उसने तलाक की मांग की. पत्नी ने पहली बार 2019 में तलाक के लिए आवेदन किया, लेकिन उसने अपने पति के वादे पर यह याचिका वापस ले ली.

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पत्नी ने मांगा तलाक

लेकिन 2022 में, पत्नी ने तलाक के लिए फिर से आवेदन किया क्योंकि पति ने अपने वादे के अनुसार अपना व्यवहार नहीं बदला. वहीं, पत्नी को फैमिली कोर्ट से तलाक मिल गई. वहीं, पति ने इस फैसले को चुनौती देते हुए केरल हाई कोर्ट में शादी को बहाल करने के लिए याचिका दायर की.

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पति ने तलाक को चुनौती दिया

याचिका में पति ने दावा किया कि उसने अपने वैवाहिक कर्तव्यों की अनदेखी नहीं की और पत्नी की शिक्षा को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया. उसने यह भी कहा कि पत्नी ने अपनी स्नातकोत्तर पढ़ाई पूरी करने से पहले बच्चों की इच्छा नहीं जताई थी.

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Kerala High Court

वहीं, केरल हाई कोर्ट ने पत्नी को तलाक देने के फैसले को बरकरार रखा, जिसने यह दावा किया कि उसके पति ने न तो यौन संबंधों में रुचि दिखाई और न ही पारिवारिक जीवन में. अदालत ने पाया कि इन कार्यों के बजाय, पति ने अनिवार्य रूप से आध्यात्मिक गतिविधियों, जैसे मंदिरों की यात्रा, पूजा-पाठ करने में ही डूबा रहा.

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पत्नी पर इच्छा थोपना 'गलत'

अदालत ने पत्नी के आरोप को गंभीरता से लिया कि उसके पति ने उसे अपनी आध्यात्मिक जीवनशैली अपनाने के लिए मजबूर किया. इस रवैये को गलत ठहराते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह में एक साथी को अपने दूसरे साथी पर अपना इच्छा थोपने का कोई अधिकार नहीं है.

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पत्नी को पहुंचा मानसिक आघात

अदालत ने कहा कि पत्नी की लगातार अनदेखी, स्नेह की कमी और वैवाहिक अधिकारों का निषेध बिना किसी वैध कारण के, साथी के लिए गंभीर मानसिक आघात का कारण बनता है.

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तलाक का फैसला रहेगा बरकरार

केरल हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पति द्वारा पत्नी को अपने आध्यात्मिक जीवन को अपनाने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आता है. वहीं, पति का पारिवारिक जीवन में रुचि न लेना उसके वैवाहिक कर्तव्यों को निभाने में विफलता को दर्शाता है.