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Divorce Case: पत्नी ने पति के खिलाफ दर्ज करवाए 45 FIR, फिर शादी बहाल करने के लिए पहुंची Orissa HC

Divorce Case: पति ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर की थी, जबकि पत्नी ने धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की थी. मामले में दोनों पक्षों की बातें तो जान लीजिए...

Written by Satyam Kumar Published : March 27, 2025 7:46 PM IST

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45 FIR

उड़ीसा हाई कोर्ट ने पत्नी की शादी बहाल करने की याचिका खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट द्वारा एक व्यक्ति को तलाक के आदेश को बरकरार रखा है जिसकी पत्नी ने उसके और उसके परिवार के खिलाफ 45 एफआईआर दर्ज कराई थी.

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ब्लैकमेल और मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न

फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए उड़ीसा हाई कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या या हिंसा की बार-बार धमकी देना केवल दुराग्रह नहीं है; बल्कि यह भावनात्मक ब्लैकमेल और मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न का एक भयावह स्वरूप है.

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उड़ीसा हाई कोर्ट

उड़ीसा हाई कोर्ट ने पत्नी की हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत दायर याचिका खारिज करते हुए कहा कि ऐसा आचरण व्यक्तिगत संघर्ष की सीमाओं को पार कर उत्पीड़न के मूल को छूता है, जिससे पीड़ित पति या पत्नी के लिए शांतिपूर्ण और सम्मानजनक वैवाहिक जीवन जीना असंभव हो जाता है.

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दूरगामी प्रभाव

उड़ीसा हाई कोर्ट ने कहा है कि इस तरह के व्यवहार का प्रभाव केवल वैवाहिक घर की चार दीवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पीड़ित जीवनसाथी के मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिरता पर स्थायी निशान छोड़ जाते हैं.

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हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (i) A

मामले में उड़ीसा हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को आधार बनाया. फैमिली कोर्ट ने पति की हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (i) a के तहत दायर तलाक याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि पत्नी द्वारा पति की अनुपस्थिति में मकान पर कब्ज़ा कर उसे किराए पर देना और पति के पिता को वहां रहने से मना कर देना सही प्रतीत नहीं होता.

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संपत्ति पर अधिपत्य की इच्छा

साथ ही पति की एलआईसी पॉलिसी में नामांकन बदलवाने की पत्नी की मांग और ससुराल वालों को घर से निकालने की घटना ने पत्नी के वित्तीय नियंत्रण और संपत्ति पर अधिकार जमाने की इच्छा को दर्शाता है.

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कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग

फैमिली कोर्ट ने 45 से अधिक एफआईआर को लेकर कहा कि इस तरह से FIR दर्ज करवाना न केवल कानूनी अधिकारों का दुरूपयोग था, बल्कि प्रतिवादी और उसके परिवार को परेशान करने और डराने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है.

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पति के क्रूरता

फैमिली कोर्ट ने कहा कि कानूनी उपाय मांगना एक वैध अधिकार है, लेकिन जीवनसाथी पर दबाव डालने के लिए इस तरह से कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग करना क्रूरता का परिचय देता है, जो विवाह के विघटन को उचित ठहराता है.

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हिंदू विवाद अधिनियम की धारा 9

भले ही पत्नी ने हिंदू विवाद अधिनियम के तहत हाई कोर्ट के सामने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर किया हो, लेकिन उसके कृत्य विवाह बचाने के उसके इरादे पर सवाल उठता है.

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63 लाख रूपये गुजारा-भत्ता

हालांकि, उड़ीसा हाई कोर्ट ने 63 लाख के फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि फैमिली कोर्ट ने 63 लाख रुपये के स्थायी गुजारा भत्ते के निर्धारण में पति की वित्तीय स्थिति और विवाह के दौरान जीवन स्तर को ध्यान में रखा है.