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'आप अतीत को दोबारा से नहीं लिख सकते', प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन की चुनौतियों और Waqf Act के विरोध में हुई हिंसा पर Supreme Court ने जताई चिंता

शीर्ष अदालत ने कानून के लागू होने के बाद हुई हिंसा पर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि जब वह इन मामलों पर गौर कर रही है तो हिंसा होना यह व्यथित करने वाली बात है.

Waqf Amendment Act 2025

Written by Satyam Kumar |Published : April 16, 2025 6:45 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह आदेश देने का प्रस्ताव रखा कि ‘‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’’ सहित वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाए, लेकिन केंद्र ने इस सुझाव का विरोध किया और इस तरह के निर्देश से पहले सुनवाई की अपील की. शीर्ष अदालत ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक न्यासों का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी. पीठ ने कहा कि अदालतों द्वारा वक्फ के रूप में घोषित संपत्तियों को वक्फ के रूप में गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वे उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ हों या विलेख द्वारा वक्फ हों. आगे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता था, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन नहीं लिया जा सकता था और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता था. पीठ ने कहा कि आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते.

हिंसा को लेकर जताई चिंता

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने पहले इन याचिकाओं को एक हाई कोर्ट को भेजने पर विचार किया, लेकिन बाद में कपिल सिब्बल, अभिषेक सिंघवी, राजीव धवन और केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं. शुरू में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि दो पहलू हैं जिन पर हम दोनों पक्षों से बात करना चाहते हैं. सबसे पहले, क्या हमें इस पर विचार करना चाहिए या इसे उच्च न्यायालय को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं? हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने और निर्णय लेने में उच्चतम न्यायालय पर कोई रोक है.

पीठ ने अभी तक कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है, लेकिन कहा है कि वह 17 अप्रैल को अपराह्न करीब दो बजे याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू करेगी. शीर्ष अदालत ने कानून के लागू होने के बाद हुई हिंसा पर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि जब वह इन मामलों पर गौर कर रही है तो यह व्यथित करने वाली बात है. प्रधान न्यायाधीश ने आगे एक आदेश पारित करने का प्रस्ताव रखा जिसमें कहा गया कि पदेन सदस्यों को उनके धर्म की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अन्य सदस्यों को मुस्लिम होना चाहिए.

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Wadf-By-User पर आगे होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मेहता से सवाल किया कि ‘‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’’ की अनुमति कैसे नहीं दी जा सकती, क्योंकि कई लोगों के पास ऐसे वक्फ पंजीकृत कराने के लिए अपेक्षित दस्तावेज नहीं होंगे. उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ (Waqf By User) से तात्पर्य ऐसी प्रथा से है, जिसमें किसी संपत्ति को धार्मिक या धर्मार्थ बंदोबस्ती (वक्फ) के रूप में मान्यता उसके ऐसे प्रयोजनों के लिए दीर्घकालिक, निर्बाध उपयोग के आधार पर दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक्फ की कोई औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो.

पीठ ने कहा,

‘‘आप उपयोगकर्ता द्वारा ऐसे वक्फ को कैसे पंजीकृत करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? इससे कुछ पूर्ववत हो जाएगा. हां, कुछ दुरुपयोग है, लेकिन वास्तविक भी हैं. मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी पढ़ा है. उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को मान्यता दी गई है. यदि आप इसे पूर्ववत करते हैं तो यह एक समस्या होगी. विधायिका किसी निर्णय, आदेश या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकती. आप केवल आधार ले सकते हैं.’’

मेहता ने हालांकि कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम के तहत शासित नहीं होना चाहता. पीठ ने इसके बाद मेहता से पूछा कि क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे. इसे जरा खुलकर कहें.  मेहता ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति ने 38 बैठकें कीं और संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके पारित होने से पहले 98.2 लाख ज्ञापनों की पड़ताल की.

सरकार कैसे तय करेगी मुस्लिम हूं या नहीं

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम का हवाला दिया और कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ कर सकते हैं. सिब्बल ने पूछा कि सरकार कैसे तय कर सकती है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ करने का पात्र हूं या नहीं? उन्होंने कहा कि सरकार यह कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ कर सकते हैं जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं. कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम का प्रभाव पूरे भारत में होगा और याचिकाओं को उच्च न्यायालय को नहीं भेजा जाना चाहिए.

वक्फ अधिनियम का विरोध करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ करना इस्लाम की एक स्थापित प्रथा है और इसे छीना नहीं जा सकता. केंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया था, जिसे दोनों सदनों में तीखी बहस के बाद संसद से पारित होने के पश्चात पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई. राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 128 और विरोध में 95 सदस्यों ने मत दिया. वहीं, लोकसभा में इसके पक्ष में 288 तथा विरोध में 232 वोट पड़े. इस तरह यह दोनों सदनों से पारित हो गया था.

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद की याचिकाओं सहित 72 याचिकाएं अधिनियम की वैधता को चुनौती देने के लिए दायर की गई हैं.

केंद्र ने आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक ‘कैविएट’ दायर कर मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की अपील की थी. किसी पक्ष द्वारा उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में यह सुनिश्चित करने के लिए ‘कैविएट’ दायर की जाती है कि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए.

(खबर पीटीआई इनपुट से है)