नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने नए साल की शुरुआत संविधान पीठ द्वारा सुनाए गए दो महत्वपूर्ण फैसलों से की है. दोनों ही फैसले केन्द्र सरकार के लिए बेहद अहम थे.
पहला फैसला जहां नोटबंदी को लेकर था वही दूसरा फैसला जिम्मेदार पदों पर बैठे जनप्रतिनिधियों के बयानों पर प्रतिबंध से जुड़ा था. सुप्रीम कोर्ट के दोनों ही फैसलो को लेकर पुरे देश की निगाहें थी.
5 जजों की संविधान पीठ का फैसला आ भी गया लेकिन चर्चा हुई तो सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ महिला जज जस्टिस बी वी नागरत्ना की. जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ और अन्य फैसलों में अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों के लिए इन दिनों चर्चा में बनी हुई हैं.
जस्टिस बीवी नागरत्ना को उनके शांत व्यवहार और बेहद शक्तिशाली शब्दों के लिए जाना जाता है. और ये नोटबंदी जैसे महत्वपूर्ण फैसले में नजर भी आया.
जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता में गठित 5 सदस्य संविधान पीठ ने नोटबंदी को लेकर दायर सभी 58 याचिकाओं को खारिज किया. संविधान पीठ के चार सदस्यों ने जहां नोटबंदी को सही ठहराया, वही केवल एकमात्र जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति जताते हुए नोटबंदी को पूर्णतया गैरकानूनी बताया.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि नोटबंदी के फैसले को RBI ने स्वतंत्र रूप से नहीं लिया था. इस मामले में RBI से केवल राय मांगी गई थी.नोटबंदी जैसा महत्वपूर्ण फैसला मात्र 24 घंटे में ले लिया गया था. देश से जुड़े इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद को अलग नहीं रखा जा सकता.
नए साल के दूसरे कार्यदिवस पर जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान पीठ ने ही दूसरा फैसला सुनाया. इस फैसले में संविधान पीठ ने जिम्मेदार पद पर बैठे मंत्रियों, विधायकों और जनप्रतिनिधियों के बयानों पर प्रतिबंध लगाने से इनकार किया.
संविधान पीठ ने कहा कि किसी मंत्री के बयान पर सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, इसके लिए मंत्री ही जिम्मेदार है.
पीठ की पांचवी सदस्य के रूप में मौजूद जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि नफरती भाषण को संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करने वाला बताते हुए कहा कि यदि कोई मंत्री अपनी आधिकारिक क्षमता में अपमानजनक बयान देता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बहुत आवश्यक अधिकार है, ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह से सूचित और शिक्षित किया जा सके, इस अधिकार को अभद्र भाषा में नहीं बदला जा सकता.
उन्होने आगे कहा कि सार्वजनिक पदाधिकारियों और मशहूर हस्तियों सहित अन्य प्रभावशाली लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने भाषण में अधिक जिम्मेदार और संयमित रहें. क्योकि उनके बयानों का प्रभाव आम जनता पर होता है.
सुप्रीम कोर्ट के इन दो फैसलों के सामने आने के बाद से ही जस्टिस बी वी नागरत्ना में चर्चा में बनी हुई है.
लेकिन आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि ये पहली बार नहीं है जब जस्टिस नागरत्ना ने इतने सख्त शब्दों में फैसलों में अपनी बात रखी हो.
कर्नाटक हाईकोर्ट में जज रहने के दौरान भी जस्टिस बी वी नागरत्ना ने नाजायज संतान को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए इस मामले में संसद से भी कानून बनाने की बात कही थी.
एक मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि कानून को इस तथ्य को मान्यता देनी चाहिए कि नाजायज माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन उनसे पैदा होने वाली संतान नाजायज नही हो सकती.
जस्टिस बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने कहा कि बिना माता-पिता के इस दुनिया में किसी बच्चे का जन्म नहीं हो सकता है. जन्म में बच्चे की कोई भूमिका नहीं होती है. जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि यह संसद का काम है कि वह बच्चों की वैध होने को लेकर कानून में एकरूपता लाए.
जस्टिस बी वी नागरत्ना अपनी मुखरता के लिए जानी जाती है ये उनके वर्ष 2012 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े एक फैसले से भी सामने आता है. इस फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने मीडिया को जिम्मेदार बनाने के लिए केंद्र सरकार से एक स्वायत्त और वैधानिक तंत्र बनाने की बात कही थी.
इसी फैसले में मीडिया द्वारा चलायी जाने वाली ब्रेकिंग न्यूज को लेकर जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा था कि किसी भी मीडिया चैनल के लिए सच पर आधारित सूचना दिखाना एक प्रमुख काम है. लेकिन सनसनीखेज के रूप में दिखाई जाने वाली ‘ब्रेकिंग न्यूज’, ‘फ्लैश न्यूज’, या किसी भी ऐसी खबर पर अंकुश लगाना चाहिए.”
वर्ष 2019 में मंदिर प्रशासन से जुड़े एक फैसले में जस्टिस बी वी नागरत्ना ने स्पष्ट किया था कि मंदिर किसी भी तरह का व्यावसायिक प्रतिष्ठान नहीं है. मंदिर संचालित करने वाले प्रशासन से कर्मचारी पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट के अंतर्गत ग्रेच्युटी के हकदार नहीं हो सकते.
ये तो कुछ फैसलों की बानगी है जिनमें जस्टिस बी वी नागरत्ना की स्पष्टता और बेहद शक्तिशाली शब्दों से हम रूबरू होते है. लेकिन उनका व्यक्तिगत जीवन और उपलब्धियां देश की प्रत्येक महिला को प्रेरित करती है.
कहते है कि हर बेटी अपने पिता के बहुत करीब होती है, ऐसा जस्टिस बी वी नागरत्ना के मामले में नहीं है इससे इंकार नहीं किया जा सकता.
जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) के पिता ईएस वेंकटरमैया भी देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 1989 में छह माह के लिए मुख्य न्यायाधीश CJI रह चुके है.
अपने पिता के कानूनी लगाव के चलते ही जस्टिस बी वी नागरत्ना को भी प्रेरणा मिली और वे भी इसी क्षेत्र में आ गयी.
क्या आप जानते है. देश की आजादी और 1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के बाद जस्टिस बी वी नागरत्ना के रूप में देश को पहली महिला मुख्य न्यायाधीश मिलेगी.
देश की सर्वोच्च अदालत में वर्तमान में जस्टिस बी वी नागरत्ना वरिष्ठता क्रम में 21 वें स्थान पर है. इसी वरिष्ठता क्रम के अनुसार वर्ष 2027 में जस्टिस बीवी नागरत्ना भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस होगी.
देश के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ के बाद जस्टिस बी वी नागरत्ना देश की दूसरी मुख्य न्यायाधीश होगी, जिनके पिता भी मुख्य न्यायाधीश रहे है.
30 अक्टूबर 1962 को कर्नाटक में जन्मी बैंगलोर वेंकटरमैया नागरत्ना की स्कूली शिक्षा भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से हुई है.
जस्टिस नागरत्ना के जम्न के बाद तक उनके पिता पूर्व सीजेआई ईएस वेंकटरमैया दिल्ली शिफ्ट हो चुके थे. ऐसे में उनके कैरियर की शुरुआत भी दिल्ली से ही हुई.
स्कूली शिक्षा के बाद 1984 जीसस एंड मैरी कॉलेज, नई दिल्ली से इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ फैकल्टी से ही कानून की डिग्री भी हासिल की.
कानूनी की डिग्री लेने के बाद जस्टिस नागरत्ना ने 1987 में बार काउंसिल ऑफ कर्नाटक में अपना रजिस्ट्रेशन कराया और वे वही रहने लगी.
बेहद कम समय में ही एक वकील के रूप में उन्हे वाणिज्यिक और संवैधानिक कानून से जुड़े मामलों में प्रसिद्धी मिली. उन्होने करीब 20 साल अपने वकालत के पेशे में बिताए.
उनकी प्रैक्टिस को देखते हुए 18 फरवरी 2008 को उन्हे कर्नाटक हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया. जिसके दो वर्ष बाद 17 फरवरी 2010 को उन्हे कर्नाटक हाईकोर्ट का स्थायी जज के रूप में पदोन्नत किया गया.
कर्नाटक हाईकोर्ट में जज के तौर पर 13 वर्ष के अनुभव के बाद उन्हे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें पदोन्नत करते हुए सीधे सुप्रीम कोर्ट जज के लिए सिफारिश की.
26 अगस्त 2021 को केन्द्र सरकार द्वारा उनके नाम की मंजूरी दी. जिसके बाद 31 अगस्त 2021 को जस्टिस बी वी नागरत्ना ने देश की सर्वोच्च अदालत के जज के रूप में शपथ ली.