Advocate as Journalist: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बार के तहत रजिस्टर्ड कोई भी अधिवक्ता फुल टाइम पत्रकारिता नहीं कर सकता है. बार काउंसिल के नियम 49 उन्हें ऐसा करने से रोकती है, जिसके अनुसार अधिवक्ता रहते वह किसी संस्था या व्यक्ति के पूर्ण वेतनभोगी कर्मचारी नहीं बन सकते हैं. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के सामने यह सवाल तब उपस्थित हुआ जब वे एक एडवोकेट के खिलाफ मानहानि की मुकदमा (Defamation Case) रद्द करने की मांग कर रहे थे, जो कि एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप मे कार्य कर रहे थे. (Mohd Kamran vs State of Uttar Pradesh and ors.)
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. पिछली सुनवाई में पीठ ने बीसीआई से पूछा था कि क्या एडवोकेट फुल-टाइम पत्रकार हो सकते हैं. इस पर जबाव देते हुए बीसीआई ने कहा कि एडवोकेट के साथ वे मान्यता प्राप्त पत्रकार नहीं हो सकते हैं.
अदालत ने बीसीआई के जबाव को रिकॉर्ड पर रखते हुए कहा कि भारत की बार काउंसिल ने स्पष्ट कहा है कि किसी एडवोकेट का फुल टाइम पत्रकारिता करना स्वीकार्य नहीं है. इस दौरान याचिकाकर्ता ने भी अदालत से कहा कि वह पत्रकारिता से दूर रहेगा.
हालांकि, मामले के गुण-दोष पर विचार करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मामले को फरवरी, 2025 तक स्थगित किया है.
बार काउंसिल 49 के अनुसार, कोई भी अधिवक्ता किसी व्यक्ति, सरकार, फर्म, निगम या संस्था का पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी नहीं बनेगा. साथ ही किसी नौकरी को स्वीकार करने से पहले वह बार काउंसिल को इसकी जानकारी देगा. साथ ही जब तक वह ऐसी नौकरी में है, तब तक वह अधिवक्ता के रूप में वकालती कार्यों से दूर रहेगा.