Delhi Air Pollution: दिल्ली में अभी सर्दी शुरू हुई है, लेकिन वायु की गुणवत्ता में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. दिल्ली में वायु प्रदूषण के मसले पर हाईकोर्ट में सुनवाई भी चल रही है. सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि दिल्ली वालों को साफ हवा में सांस लेने का अधिकार है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने वन विभाग को फटकार लगाते हुए उसके अधिकारियों को राजधानी की वायु गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार ठहराया.
अदालत ने विभाग से यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने को कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) में सुधार हो. अदालत दिल्ली में वैकल्पिक जंगल के निर्माण और वन विभाग में रिक्तियों को भरने से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही थी. जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण बच्चे अस्थमा से पीड़ित हो रहे हैं.
जज ने कि अतिक्रमण राष्ट्रीय राजधानी के फेफड़े माने जाने वाले रिज क्षेत्र में, सरकारी अधिकारियों की नाक के ठीक नीचे हो रहा था.
वन विभाग के प्रमुख सचिव को "युद्ध स्तर" पर रिक्तियों को भरने के लिए कहते हुए अदालत ने कहा कि वो जिस हवा में सांस लेते हैं उसकी गुणवत्ता के लिए आप जिम्मेदार हैं. ये सुनिश्चित करना आपका दायित्व है कि AQI में कमी आए.
अदालत ने अफसोस जताया,
"हर बच्चे को सांस लेने में समस्या हो रही है (दिसंबर-जनवरी में) लोगों को उस समय बाहर जाना पड़ता है जब यह यहां रहने का सबसे अच्छा समय होता है."
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि दिल्ली के निवासियों को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा का मौलिक अधिकार है और हरियाली इसमें बहुत मदद करती है. वरिष्ठ अधिकारी ने अदालत को सूचित किया कि विभाग हरियाणा सीमा के पास ईसापुर में 136 एकड़ मानित वन भूमि का पर्यावरण-पुनर्स्थापन करने जा रहा है.
उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा यमुना के बाढ़ क्षेत्रों का पारिस्थितिक रूप से कायाकल्प और जीर्णोद्धार किया जा रहा है.अदालत को यह भी आश्वासन दिया गया कि वन विभाग में विभिन्न रिक्त पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कदम उठाए जाएंगे.
अदालत ने दिल्ली सरकार के वन विभाग से कहा था कि हमारे पास समय की विलासिता नहीं है क्योंकि मौजूदा वन क्षेत्र, यानी रिज क्षेत्र, का अपना जीवन है और एक वैकल्पिक समर्पित वन 10-15 साल में तैयार होगा . कोर्ट ने कहा कि वैकल्पिक जंगल विकसित करने के लिए 0.23 एकड़ भूमि अलग रखने के बारे में अधिकारियों द्वारा रखा गया प्रस्ताव एक मजाक था.
मामले की अगली सुनवाई 8 नवंबर को होगी.