Right To Speedy Trial Is A Fundamental Right: सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू स्पीडी ट्रायल के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होते देख मनीष सिसोदिया को जमानत दे दी है. मनीष सिसोदिया की दूसरी बार जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि था कि अपीलकर्ता के खिलाफ ट्रायल 6-8 महीने में पूरा कर लेंगे, ऐसा होना मुश्किल दिख रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने शराब नीति घोटाले में मनीष सिसोदिया को जेल में पिछले 17 महीने से बंद देख जमानत दे दी है.
मामले की त्वरित सुनवाई का अधिकार, राइट टू स्पीडी ट्रायल, किसी व्यक्ति को संविधान की आर्टिकल 21 के तहत मिला एक मौलिक अधिकार है. आर्टिकल 21 जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में त्वरित सुनवाई के अधिकार का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या करके राइट टू स्पीडी ट्रायल को इसमें शामिल किया है, जिससे राइट टू स्पीडी ट्रायल, जीवन के अधिकार का ही एक पहलू हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर किसी आरोपी को लगता है कि उसके त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है, तो वह राहत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है.
शीघ्र सुनवाई का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिया गया जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में से मिला एक मौलिक अधिकार है। अपने फैसले में, शीर्ष अदालत ने जमानत तक अधिक पहुंच, अधिक मानवीय जीवन स्तर और गिरफ्तारी से मुकदमे तक के समय में उल्लेखनीय कमी का आदेश दिया.
अदालत ने कहा कि कोई भी प्रक्रिया जो उचित त्वरित सुनवाई सुनिश्चित नहीं करती उसे उचित, निष्पक्ष और न्यायसंगत नहीं माना जा सकता जैसा कि मेनका गांधी मामले में बताया गया है। इसलिए बिहार सरकार को आदेश दिया गया कि विचाराधीन कैदियों को उनके बांड (बन्धपत्र) पर तुरंत रिहा किया जाए.
अदालत की प्रतिबद्धता या अभियोजकों की कमी और क्या अभियुक्त ने लिए गए समय में उचित योगदान दिया। ऐसे कई कारण हैं जो ट्रायल में देरी के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. उनमें से सबसे लोकप्रिय हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिसोदिया बिना ट्रायल के 17 महीने से जेल में हैं, यह उनके त्वरित सुनवाई के अधिकार (Right To Speedy Trial) का हनन है. आगे सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे पता चले कि सिसोदिया भाग सकते हैं या सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं साथ ही बिना किसी सुनवाई के लंबे समय तक जेल में रखने की आलोचना की और कहा कि यह 'न्याय का उपहास' (Travesty Of Justice) है.