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नाबालिग पीड़िता को बार-बार गवाही के लिए नहीं बुलाना चाहिए, POCSO मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम आदेश

Supreme Court ने इस बात पर जोर दिया है कि यौन शोषण की शिकार Minor Victim को बार-बार ट्रायल कोर्ट में गवाही के लिए नहीं बुलाया जाना चाहिए. कोर्ट ने Odisha High Court और एक विशेष अदालत के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की, जिसमें पीड़िता को गवाही के लिए फिर से बुलाने की आरोपी की याचिका को खारिज कर दिया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि मुकदमे के हर चरण में पीड़िता की भलाई सुनिश्चित की जानी चाहिए.

Written by Satyam Kumar |Published : August 28, 2024 10:49 PM IST

Sexual Harassment Case: सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा है कि यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता को ट्रायल कोर्ट में गवाही के लिए बार-बार नहीं बुलाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता को पहले ही दो बार गवाही देने के लिए बुलाया जा चुका है. अदालत उड़ीसा हाईकोर्ट और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत बने स्पेशल कोर्ट के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें नाबालिग पीड़िता को गवाह के रूप में दोबारा जांच के लिए बुलाने से इनकार कर दिया गया था.

पीड़िता की भलाई हर हाल में सुनिश्चित हो, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की याचिका की खारिज

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यौन अपराध के दर्दनाक अनुभव से पीड़ित बच्चे को एक ही घटना के बारे में गवाही देने के लिए बार-बार नहीं बुलाया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि पीड़िता की भलाई सुनवाई के हर चरण में सुनिश्चित की जानी चाहिए.

शीर्ष अदालत ने कहा,

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"पॉक्सो अधिनियम एक विशेष कानून है, जिसे बच्चों को यौन अपराधों से बचाने और उनके हितों की रक्षा करने और अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के हर चरण में बच्चे की भलाई सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है. अधिनियम की धारा 33 (5) के अनुसार, विशेष अदालत पर यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि बच्चे को अदालत के समक्ष अपनी गवाही देने के लिए बार-बार न बुलाया जाए."

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि  धारा 33 (5) पीड़िता को गवाह के रूप में दोबारा जांच के लिए वापस बुलाने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती, लेकिन प्रत्येक मामले को उसके व्यक्तिगत तथ्यों और परिस्थितियों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घटना के समय पीड़िता की उम्र करीब 15 साल थी और आरोपी के वकील को नाबालिग से दो बार जिरह करने का मौका पहले ही दिया जा चुका है.

आरोपी की याचिका खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा,

"बचाव पक्ष के वकील को पीड़िता से जिरह करने के लिए पर्याप्त अवसर दिए गए थे. जब पीड़िता की दो बार पहले ही जांच हो चुकी है और फिर उससे लंबी जिरह की जा चुकी है, तो पीड़िता को वापस बुलाने की अनुमति देना, खासकर पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराधों के मुकदमे में, कानून के मूल उद्देश्य को ही खत्म कर देगा."

सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा हाईकोर्ट और स्पेशल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए आरोपी की याचिका खारिज की.

पूरा मामला क्या है?

आरोपी ने कथित तौर पर नाबालिग लड़की का अपहरण कर, उससे एक मंदिर में उससे शादी कर ली और उसे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया. बाद में, पीड़िता को उसके माता-पिता ने पुलिस की मदद से बचाया.

2020 में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता, पॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. सुनवाई के दौरान विशेष अदालत ने आरोपी द्वारा पीड़िता को गवाह के तौर पर दोबारा बुलाने के लिए दायर आवेदन को खारिज किया था. ट्रायल कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 33 (5) को आधार बनाते हुए कहा कि बच्चे को गवाही देने के लिए अदालत में नहीं बुलाया जाएगा.