Tree Census: आज सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पेड़ों की गणना कराने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ो की गणना के लिए वन और वन अनुसंधान विभाग को एक साथ काम करने को कहा है. इसी दौरान अदालत ने कहा कि जब भी पेड़ अधिकारी 50 या अधिक पेड़ों को काटने की अनुमति देते हैं, तो पहले उन्हें सभी दस्तावेज CEC को भेजने होंगे. सीईसी से वापस जबाव मिलने के बाद ही वे आवेदनकर्ता को फैसला बताएंगे. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दिल्ली के वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के तहत संरक्षित पेड़ो को काटने से पहले अदालत की अनुमति लेने से जुड़ी याचिका पर आया है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और जस्टिस अभय एस ओका की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पेड़ो की गणना कराने के आदेश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली वन विभाग को पेड़ों की गणना के आदेश देते हुए कहा कि वे इस कार्य में वन अनुसंधान संस्थान (FRI) को शामिल करने के साथ तीन विशेषज्ञों, रिटायर IFS अधिकारियों इश्वर सिंह और सुनील लिमये और पेड़ विशेषज्ञ प्रदीप सिंह, की सहायता लें. साथ ही केन्द्र सरकार को पेड़ो की गणना कराने में जरूरत पड़नेवाली इक्विपमेंट्स उपलब्ध कराने को कहा है.
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि जब भी वृक्ष अधिकारी 50 या उससे अधिक पेड़ों को काटने की अनुमति देते हैं, तो उन्हें तुरंत सभी दस्तावेज CEC को भेजने होंगे. वहीं, CEC को आवेदन को अस्वीकार करने, आंशिक रूप से अनुमति देने या वृक्ष अधिकारी द्वारा दी गई अनुमति के कारणों को संशोधित करने का अधिकार होगा. सीईसी के फैसले के बाद ही वृक्ष अधिकारी अपने फैसला आवेदनकर्ता को देगा.
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि वृक्ष प्राधिकरण का मूल कार्य वृक्षों को संरक्षित और बचाना है. केवल विशेष परिस्थितियों में ही वे वृक्षों को काटने की अनुमति दे सकते हैं और इसके लिए वृक्ष अधिकारी को स्थल पर जाकर यह निर्धारित करना होगा कि वृक्षों को काटना आवश्यक है या नहीं, साथ ही इन पेड़ो को किसी तरह बचाया जा सकता है या नहीं. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सामान्य परिस्थितियों में 50 या उससे अधिक पेड़ों को काटने की अनुमति देते समय वृक्षारोपण की शर्त भी लगाई जानी चाहिए.