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शीर्ष पुरातत्वविदों ने की 300 साल पुराने मकबरे को स्थानांतरित करने के अदालत के आदेश की अलोचना

मद्रास उच्च न्यायालय ने कुछ समय पहले केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को निर्देश दिया था कि न्यायालय परिसर से 300 साल पुराने संरक्षित मकबरे को हटा दिया जाए। इस निर्देश कि शीर्ष पुरातत्वविदों ने आलोचना करते हुए क्या कहा है, आइए जानते हैं..

Madras High Court

Written by Ananya Srivastava |Published : July 27, 2023 3:55 PM IST

नई दिल्ली: देश के कुछ शीर्ष पुरातत्वविदों ने मद्रास उच्च न्यायालय की ओर से केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को न्यायालय परिसर से 300 साल पुराने संरक्षित मकबरे को हटाने के निर्देश देने के मामले की कड़ी आलोचना की है। भारतीय पुरात्व विभाग (एसएसआई) इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय की खंड पीठ में याचिका दायर करने की तैयारी कर रहा है।

यह मकबरा (Tomb of David Yale and Joseph Hymners) 1687 से 1692 तक मद्रास के राज्यपाल रहे एलिहू येल ने अपने बेटे डेविड येल और दोस्त जोफस हायमर की याद में बनवाया था। ब्रिटेन लौटने के बाद येल ने भारत से जुटाए धन का काफी बड़ा हिस्सा ‘कोलीगेट स्कूल’ को दिया,जिसे बाद में येल कॉलेज नाम का दिया गया और अब यह येल विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार यह दुनिया के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में से एक है। एएसआई ने तत्कालीन प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत पहली बार 1921 में मकबरे को ‘संरक्षित स्मारक’ घोषित किया था। स्वतंत्रता के बाद इसे एक ‘संरक्षित स्मारक’ की श्रेणी में लाया गया।

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अदालत में अधिवक्ताओं, कर्मचारियों, वादियों, सरकारी अधिकारियों आदि की संख्या बढ़ने से वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है इसलिए यहां बहु-स्तरीय पार्किंग बनाई जानी है और इसके लिए ही अदालत परिसर में स्थित इस मकबरे का स्थानांतरण प्रस्तावित है। कानून के अनुसार संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं किया जा सकता, यह मकबरा विकासात्मक गतिविधियों के रास्ते में आ रहा है।

मद्रास उच्च न्यायालय ने बी मनोहरन नामक व्यक्ति की याचिका पर स्थानांतरण आदेश पारित किया था। अदालत ने आदेश में कहा था कि मकबरे का न तो पुरातात्विक महत्व है और न ही ऐतिहासिक महत्व है, न ही यह कोई कलात्मक कृति है।

सुनवाई के दौरान एएसआई ने स्थानांतरण का विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 49 के खिलाफ है, जिसमें प्रत्येक राज्य को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह प्रत्येक स्मारक या कला की दृष्टि से, एतिहासिक महत्व वाले स्थानों अथवा वस्तुओं को सुरक्षित करे।

कुछ प्रसिद्ध पुरातत्वविदों ने इस आदेश के खिलाफ तर्क दिया कि अदालत के पास किसी स्मारक के कलात्मक या पुरातात्विक महत्व को तय करने की विशेषज्ञता नहीं है।

एएसआई के संयुक्त महानिदेशक (सेवानिवृत्त) डॉ एम नंबिराजन का कहना है कि यह मकबरा ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका निर्माण एहिलु येल ने कराया था, जिन्होंने विश्व प्रसिद्ध येल विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। एक अन्य प्रसिद्ध पुरातत्वविद डॉ जीएस ख्वाजा ने कहा, ‘‘यह एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण आदेश है। स्मारक संसद के अधिनियम के तहत संरक्षित है और उच्च न्यायालय कानून से ऊपर नहीं है।