नई दिल्ली: Kerala High Court ने निचली अदालत द्वारा दी गई दो ऐसे आरोपियों की जमानत को रद्द कर दिया है जिन पर अस्पताल में ईलाज कर रहे डॉक्टरों पर हमले का आरोप था.
केरल हाईकोर्ट ने देश में डॉक्टरों पर लगातार हो रहे हमलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि “जब किसी मरीज के साथ कोई दुर्घटना होती है तो डॉक्टरों को धमकियों का सामना करना पड़ता है, मामूली उकसावे पर भी स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला किया जाता है.
पीठ ने कहा कि केरल राज्य में प्रचलित कानून और स्वास्थ्य कर्मियों पर हमलों को गंभीर अपराध मानने के बार बार अदालती आदेशों के बावजूद डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की पुनरावृत्ति होती रही है.
पीठ ने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों पर हमलों की घटनाओं से निपटने के दौरान अदालतों द्वारा अपनाया गया आकस्मिक दृष्टिकोण भी इस तरह की हिंसा का सहारा लेने की प्रवृत्ति में योगदान देता है.”
Justice Bechu Kurian Thomas की एकल पीठ इस मामले में पीड़ित और शिकायतकर्ता डॉक्टर द्वारा निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायरा याचिका पर सुनवाई कर रही थी. डॉक्टर ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर हमलावरों को निचली अदालत द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने का अनुरोध किया था.
आरोपियों की एक महिला रिश्तेदार प्रसव के लिए अस्पताल में भर्ती थी. अस्पताल में महिला द्वारा मृत बच्चे को जन्म देने के बाद कथित रूप से दोनो आरोपियो ने डॉक्टर पर हमला किया था.
इस हमले में कथित रूप से एक डॉक्टर की नाक टूट गई थी. इस मामले में हमलावरों के खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 325, 427, 506 और 308 सपठित धारा 34 और केरल हेल्थकेयर सर्विस पर्सन्स एंड हेल्थकेयर सर्विस इंस्टीट्यूशंस (हिंसा और संपत्ति को नुकसान रोकथाम) अधिनियम, 2012 की धारा 3 और 4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.
आरोपियों ने पहले अग्रिम जमानत के लिए अतिरिक्त सत्र न्यायालय, कोझिकोड का दरवाजा खटखटाया, जिसे इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि अभियुक्तों से हिरासत में पूछताछ आवश्यक है.
इसके खिलाफ आरोपियों ने प्रिसिपल मुख्य सत्र न्यायालय का में आत्मसमर्पण कर दिया तो उन्हें उसी दिन जमानत दे दी गई.
निचली अदालत ने इस मामले में दोनो आरोपियों की ओर से दायर जमानत को मंजूर कर लिया था. जिसे पीड़ित डॉक्टरों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी.
महिला के रिश्तेदार और डॉक्टरों पर हमला करने के आरोपियों की ओर से बचाव में हाईकोर्ट में कहा गया कि हमला महिला भ्रूण की मृत्यु से उत्पन्न भावनात्मक प्रकोप के चलते किया गया है और यह कोई सोची समझी साजिश या पहले से तय किया गया कोई हमला नही था.
बचाव पक्ष ने कहा कि यह एक भावनात्मक कृत्य था जिसे आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता.
बचाव पक्ष ने डॉक्टर के नाक की हड्डी के फ्रैक्चर और घटना से संबंधित अन्य चोटों को दर्शाने वाले मेडिकल रिकॉर्ड को झूठा बताते हुए कहा गया कि उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता.
मामले में पीड़ित डॉक्टरों की ओर से अदालत में बचाव पक्ष की दलीलों का विरोध करते हुए कहा गया कि उनके द्वारा महिला के प्रसव की पूर्ण जानकारी दिए जाने के बाद भी उन पर हमला किया गया.
अधिवक्ता ने कहा कि ऐसे हमलावरों को अदालतों से आसानी से मिलने वाली राहत भी उन्हे डॉक्टरों के साथ हमला करने के लिए प्रोत्साहित करता है. अधिवक्ता ने कहा कि इस मामले में भी निचली अदालत ने आरोपियों को जमानत देते हुए समय अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है.
अधिवक्ता ने कहा कि केरल हेल्थकेयर सर्विस पर्सन एंड हेल्थकेयर सर्विस इंस्टीट्यूशंस (हिंसा और संपत्ति को नुकसान की रोकथाम) अधिनियम, 2012 के तहत अपराधों को जमानत आदेश में भी संदर्भित नहीं किया गया और जमानत के अनुदान के लिए कोई तर्क नहीं दिया गया, जो सत्र न्यायाधीश द्वारा विवेक का उपयोग न करने को दर्शाता है.
याचिकाकर्ता डॉक्टरों के अधिवक्ता ने कहा कि ज़मानत आदेश बिना विवेक का उपयोग किए और आरोपों की गंभीरता पर विचार किए बिना पारित किया गय
यह भी कि प्रधान सत्र न्यायालय इस तथ्य पर भी विचार करने में विफल रहा कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने विशेष रूप से यह कहते हुए जमानत अर्जी खारिज कर दी कि आरोपी से हिरासत में पूछताछ आवश्यक है.
दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद अदालत ने आरोपी हमलावरों को कृत्य को अपराधिक मानते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई उनकी जमानत को रद्द करने का आदेश दिया है.