नई दिल्ली: स्कूल में अनुशासन बनाए रखने के लिए किसी बच्चे को डांटना या उचित सजा देना अपराध नहीं माना जाएगा ये फैसला गोवा में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक प्राथमिक स्कूल शिक्षक की सजा को पलटते हुए सुनाया है. जिसे एक दिन के कारावास की सजा सुनाई गई थी और दो स्कूली बच्चों को कथित तौर पर डंडे से पीटने पर ₹1 लाख का जुर्माना भी लगाया गया था.
जस्टिस भरत देशपांडे की उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि "प्राथमिक विद्यालय में यह घटना काफी आम है. छात्रों को अनुशासित करने और अच्छी आदतों को उनमें विकसित करने के लिए, शिक्षक सही कार्य करने और कभी-कभी थोड़ा कठोर होने के लिए बाध्य होते हैं.
पीठ ने कहा कि छात्रों को स्कूल में एडमिशन सिर्फ पढ़ाई के उद्देश्य से नहीं दिलाया जाता,बल्कि जीवन के अन्य पहलुओं को सिखाने के लिए जिसमें अनुशासन भी शामिल है उसके लिए दिया जाता है. स्कूल का उद्देश्य केवल अकादमिक विषयों को पढ़ाना नहीं है, बल्कि ऐसे छात्रों को जीवन के सभी पहलुओं में तैयार करना है ताकि भविष्य में वह अच्छे व्यवहार और अच्छे विचारों वाला व्यक्ति बन सके.
वर्ष 2014 में शिक्षक पर आरोप लगाया गया था कि उसने दो लड़कियों को पीटा था जो कि पांच और आठ साल की बहने थी. क्योंकि छोटी लड़की अपनी पानी की बोतल खत्म करने के बाद दूसरे छात्र की बोतल से पानी पी रही थी. जब उसकी बहन दूसरी कक्षा से उसे देखने के लिए आई, तो शिक्षक ने कथित तौर पर उसके हाथ पर ruler से पीटा था.
पीठ ने कहा कि इस मामले में ऐसा लगता है कि छोटा बच्चा दूसरे छात्र की बोतल से पानी पीता है जो निश्चित रूप से स्कूल के अनुशासन के खिलाफ है और अन्य छात्रों के माता-पिता इसे लेकर शिकायतें भी कर सकते हैं. ऐसे में शिक्षक होने के नाते आरोपी को कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
पीठ ने आगे कहा कि यदि छात्र निर्देशों को समझने में सक्षम नहीं होते हैं और बार-बार ऐसी गलतिया कर रहे हैं, तो ऐसे में अपनी कक्षा में अनुशासन बनाए रखने के लिए एक शिक्षक को कभी-कभी उचित बल का प्रयोग करना पड़ता है."
जस्टिस भरत देशपांडे ने कहा "जहां तक अभियुक्त द्वारा छड़ी के उपयोग का संबंध है, यह पर्याप्त रूप से साबित नहीं किया गया है. इसलिए गंभीर संदेह हो रहा है कि आरोपी द्वारा उस विशेष दिन पर छड़ी का इस्तेमाल किया गया था या नहीं.
पीठ ने अपने फैसले में ये भी कहा कि “शिक्षकों को समाज में सबसे अधिक सम्मान दिया जाता है. वो हमारी शिक्षा प्रणाली की रीढ़ हैं. यदि शिक्षक तुच्छ मामलों के लिए और विशेष रूप से बच्चों को सही करते समय इस तरह के आरोपों से डरते हैं, तो स्कूलों को संचालित करना और उचित शिक्षा देना और अधिक विशेष रूप से अनुशासन बनाए रखना मुश्किल होगा.
एक सभ्य समाज को एक सभ्य युवा पीढ़ी की जरूरत है जो एक-दूसरे का सम्मान करे और उसे देश की भावी पीढ़ी के रूप में माना जाए.
शिक्षक को पहले गोवा चिल्ड्रन कोर्ट ने 2019 में पारित एक आदेश के माध्यम से दोषी ठहराया था.