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थाने से गाली देकर भगाया, FIR भी नहीं लिखा; Supreme Court ने पुलिस इंस्पेक्टर पर लगे दो लाख के जुर्माने को बरकरार रखा

पुलिस इंस्पेक्टर ने संज्ञेय अपराध होने के बावजूद प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया और शिकायतकर्ता की माँ के साथ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया.

Written by Satyam Kumar |Updated : May 1, 2025 11:50 AM IST

आज सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस इंस्पेक्टर पर लगे दो लाख के जुर्माने को हटाने से इंकार कर दिया है. पुलिस अधिकारी पर आरोप है कि थाने पर शिकायत लिखाने आए व्यक्ति की शिकायत नहीं लिखा और उल्टे गाली देकर भगा दिया. आइये जानते हैं कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक कैसे गया और इस मामले से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें...

पुलिस इंस्पेक्टर पर लगा दो लाख का जुर्माना

यह मामला तब शुरू हुआ, जब शिकायतकर्ता अपने माता-पिता के साथ श्रीवल्लिपुथुर पुलिस थाने में 13 लाख रुपये की कथित धोखाधड़ी और गबन की शिकायत दर्ज कराने पहुंचा था. मौजूद पुलिस सब-इंस्पेक्टर ने शिकायत रजिस्टर करने से इंकार करते हुए मामले को पुलिस इंस्पेक्टर के पास जाने को कहा. वहीं, शाम में दोबारा से पीड़ित शिकायत लिखाने पहुंचा. कई घंटे इंतजार करने के बाद इंस्पेक्टर साहब थाने पहुंचे और फिर शिकायत लिखने से इंकार कर दिया और पीड़ित की मां के भद्दी-भद्दी गाली देकर थाने से भगा दिया, जिसके बाद यह मामला तमिलनाडु राज्य के मानवाधिकार आयोग पहुंचा. स्टेट ह्यूमन राइट कमीशन (SHRC) ने पाया कि पुलिस इंस्पेक्टर ने ना केवल शिकायत लिखने से इंकार किया बल्कि भद्दी-भद्दी गालियां भी दी. मानवाधिकार आयोग ने इस घटना को व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन पाते हुए पुलिस इंस्पेक्टर पर दो लाख रूपये का जुर्माना लगाया. श्रीविल्लीपुथुर के तत्कालीन पुलिस निरीक्षक पावुल येसु धसन ने SHRC के आदेश के विरुद्ध अपील दायर की थी. मद्रास हाई कोर्ट ने SHRC के आदेश को बरकरार रखा था, जिसे उसने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

सबको सम्मानित जीवन का अधिकार: SC

पूर्व पुलिस निरीक्षक पावुल येसु धसन (Pavul Yesu Dhasan) द्वारा तमिलनाडु मानवाधिकार आयोग (SHRC) के आदेश और हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुंइया की पीठ ने इस मामले को सुना. सुप्रीम कोर्ट ने घटना के फैक्ट से हैरानी जताते हुए कहा कि वरिष्ठ अधिकारी होने के नाते याचिकाकर्ता को तुरंत FIR दर्ज करनी चाहिए थी, लेकिन उसने न केवल ऐसा करने से मना किया बल्कि पीड़ित की मां के साथ आपत्तिजनक भाषा का भी प्रयोग किया. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का जिक्र करते हुए कहा कि पुलिस द्वारा प्रत्येक नागरिक के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना, उन नागरिकों का मौलिक अधिकार है. पुलिस द्वारा शिकायतकर्ता के साथ दुर्व्यवहार करना इस अधिकार का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग के आदेश को बरकरार रखते हुए एक पुलिस इंस्पेक्टर पर 2 लाख रुपये के जुर्माने को बरकरार रखा, जो पीड़ित को मुआवजे के रूप में दिया जाएगा.

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