Plea Challenging Burqa Ban:सुप्रीम कोर्ट 9 अगस्त को बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई करेगा जिसमें कॉलेज के कैंपस में बुर्का, हिजाब, नकाब, स्टोल या टोपी पर प्रतिबंध को बरकरार रखा गया है. इस प्रतिबंध को छात्राओं ने अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का दावा करते हुए चुनौती दी है. कॉलेज ने तर्क दिया कि यह प्रतिबंध सभी धार्मिक प्रतीकों पर लागू होता है, न कि केवल मुसलमानों पर। सुनवाई कल के लिए निर्धारित है.
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील द्वारा जल्द सुनवाई के लिए मामले का उल्लेख किए जाने के बाद शुक्रवार को सुनवाई की जाएगी. हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से आज ही मामले की सुनवाई करने का आग्रह किया क्योंकि आज परीक्षाएं शुरू हो रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा,
"क्या आपको परीक्षा में बैठने से रोका जा रहा है?"
सवाल से याचिकाकर्ता के वकील थोड़ा सकपकाए. किंतु वस्तुस्थिति को समझते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आश्वासन दिया कि वे कल इस मामले को सुन रहे हैं.
जून में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने छात्राओं के एक समूह द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें मुंबई के एक कॉलेज द्वारा कक्षा में हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी या किसी भी तरह का बैज पहनने पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती दी गई थी। इसने कहा था कि यह कॉलेज प्रशासन के फैसले में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है. ये छात्राएँ चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज की थीं.
बॉम्बे उच्च न्यायालय में जस्टिस एएस चंदूरकर और जस्टिस राजेश एस पाटिल की बेंच ने उक्त टिप्पणी की.
"नए ड्रेस का उद्देश्य छात्रों की धार्मिक पहचान छिपाए रखना है. ऐसा करना छात्रों के शैक्षणिक हित के साथ-साथ कॉलेज के प्रशासन और अनुशासन के लिए जरूरी है."
अदालत ने आगे कहा,
"ड्रेस कोड का पालन करने का आग्रह कॉलेज परिसर के भीतर है और इससे याचिकाकर्ताओं की पसंद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अन्यथा प्रभावित नहीं होता है."
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यूजीसी की गाइडलाइन्स का हवाला भी दिया. अदालत ने आगे कहा कि कॉलेज का ड्रेस कोड यूजीसी (उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा देना) रेगुलेशन्स, 2012 और गैर-भेदभावपूर्ण वातावरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई अन्य शैक्षिक नीतियों का उल्लंघन नहीं करता है.
हाईकोर्ट ने 'हिजाब पहनने' को धार्मिक प्रथा बताने की दलीलों से इंकार किया. अब इसी फैसले को छात्राओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.