आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उसके अधीनस्थ सभी कोर्ट सम्मान से पालन करते हैं. ऐसा बिरले ही देखने को मिलता है जब कोई अदालत या जज शीर्ष अदालत के फैसले की निंदा या आलोचना करते है. सकारात्मक आलोचना की स्वीकार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट हमेशा ही आशान्वित रही है. कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट अदालत की अवमानना करने पर भी उदारता दिखाते हुए जिम्मेदार लोगों (एडवोकेट, प्रार्थी) को अभय (माफ करना) प्रदान किया है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने ही अधीनस्थ न्यायालयों की आलोचना को कैसे देखता हैं? जिन्हें नियम, कानून और परंपराओं का स्पष्ट ज्ञान हैं. यह देखना बहुत ही ज्ञानप्रद रहेगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट आज ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करने जा रही है, जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जज ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की निंदा की है.
वाक्या पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत से जुड़ा है, जिनकी टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच इस मामले को सुनेगी. पीठ में सीजेआई के साथ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सूर्यकांत शामिल रहेंगे.
स्वत: संज्ञान मामले का टाइटल 'ऑर्डर ऑफ पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ऑर्डर डेटेड 17.07.2024 एंड एंसिलरी इश्यूज' है. सुप्रीम कोर्ट में स्वत: संज्ञान का मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा पारित 17 जुलाई के आदेश पर शुरू किया गया है. इस आदेश में हाईकोर्ट जज ने उच्च न्यायालय द्वारा शुरू की गई अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कई आलोचनात्मक टिप्पणियां की थीं.
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में यह मानने की प्रवृत्ति है कि वह सबसे "सुप्रीम" है और वह उच्च न्यायालय को संवैधानिक रूप से अपने से कमतर मानता है. फैसले में, उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय को चेतावनी नोट भी जारी किया है जिसमें शीर्ष अदालत को अपने फैसले में कानूनी पहलुओं को दिखाने के लिए विशेष रूप से लॉजिकल होने को कहा है. पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस के इस रवैये को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान में लिया है.