मामला आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले का है, जहां एक तहसीलदार ने हाई कोर्ट के फैसले से इतर जाकर झुग्गी-झोपड़ियो को ढ़हा दिया, जिस वजह से वहां रह रहे लोगों को विस्थापित होना पड़ा. प्रभावित लोग इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय पहुंचे, जहां हाई कोर्ट ने डिप्टी कलेक्टर को अवमानना का दोषी पाते हुए उसे 2 महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई. इस फैसले को चुनौती देते हुए डिप्टी कलेक्टर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.अब हाई कोर्ट के आदेशों की अवज्ञा करने और गुंटूर जिले में झुग्गीवासियों की झोपड़ियां जबरन हटाने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के एक उप-कलेक्टर (जो पहले तहसीलदार था) को जमकर फटकार लगाई है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि उसे जेल की सजा काटनी होगी, उन सभी व्यक्तियों को भारी जुर्माना देना होगा जिन्हें उसके कार्यों से नुकसान हुआ है, और उसे पदावनति भी झेलनी होगी. न्यायालय ने उसकी अवज्ञा को हाई कोर्ट की गरिमा के साथ खिलवाड़ है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस एजी मसिह ने मामले की सुनवाई की. अदालत ने कहा कि हम सामान्य परिस्थितियों में इस मामले को नहीं सुनते, लेकिन हम एक दयालु दृष्टिकोण अपनाते हैं और नोटिस जारी करने का निर्णय लेते हैं. सुनवाई के दौरान, जस्टिस गवई ने कहा कि अधिकारियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि वे कानून से ऊपर हैं. उन्होंने कहा कि हम उसे अभी गिरफ्तार करेंगे। कोई उच्च न्यायालय की गरिमा के साथ खेल रहा है. यह सुनकर तहसीलदार के वकील देवाशीष भारुका ने कहा कि उनके मुवक्किल का व्यवहार अप्रत्याशित था, लेकिन अदालत से दया की मांग की.
वकील ने कहा कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के राज्य उस समय कठिन दौर से गुजर रहे थे. उन्होंने यह भी बताया कि जब तहसीलदार ने कार्रवाई की, तब कई संरचनाएं रातोंरात बनाई गई थीं. जवाब में, जस्टिस गवाई ने पूछा, "क्या उन्होंने उन बच्चों के बारे में नहीं सोचा, जब उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में झुग्गी-झोपड़ियों को हटाया?" यह सवाल सीधे तहसीलदार के व्यवहार पर था.
गुंटूर जिले में चार व्यक्तियों ने भूमि अधिकार के लिए आवेदन किया था. उन्होंने हाई कोर्ट में कहा कि राजस्व अधिकारी बिना उनकी याचिकाओं पर विचार किए उन्हें हटाने का प्रयास कर रहे थे. हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को स्वीकार किया और तहसीलदार को निर्देश दिया कि वे उनकी याचिका पर विचार करें.
दूसरे समूह ने भी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, दावा करते हुए कि उन्हें बिना कारण हटाया जा रहा था. हाई कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को उन्हें हटाने से रोकने का आदेश दिया. दोनों मामलों में, आवेदकों ने हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की. उन्होंने कहा कि तहसीलदार ने 6 दिसंबर 2013 और 8 जनवरी 2014 को उनके झोपड़ों को बलात हटा दिया. हाई कोर्ट ने गौर किया कि तहसीलदार ने जानबूझकर न्यायालय के आदेशों की अवहेलना की और उन्हें दो महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाई. इसके अलावा, उन्हें 2000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया.
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने 13 सितंबर 2013 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें तहसीलदार को आवेदकों की भूमि अधिकार के लिए आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया गया. इसके अलावे, तहसीलदार को आवेदकों के कब्जे को बाधित नहीं करने के आदेश दिए गए थे लेकिन तहसीलदार ने इस आदेश की अनदेखी की. तहसीलदार ने हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. उन्होंने कहा कि उन्होंने केवल अवैध कब्जों को हटाने का प्रयास किया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी दलील को खारिज कर दिया. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में कड़ी कार्रवाई की है. अदालत ने कहा कि तहसीलदार को सजा भुगतनी होगी और उन्हें उन सभी लोगों को भारी मुआवजा देना होगा जो उनके कार्यों से प्रभावित हुए हैं.