सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर जवाब मांगा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका एक महत्वपूर्ण विषय को उठाती है, हांलाकि, ये मुद्दा कार्यपालिका या विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है. इसे लेकर सख्त कदम उठाने की जरूरत है. सरकार के अलावा जिनको नोटिस जारी किया गया है, उनमें नेटफ्लिक्स, उल्लू डिजिटल लिमिटेड, ऑल्ट बाला जी, ट्विटर, मेटा प्लेटफार्म और गूगल शामिल है. पूर्व सूचना आयुक्त उदय माहूरकर और बाकी की ओर से दायर याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट केन्द्र सरकार को नेशनल कंटेंट कंट्रोल ऑथोरिटी का गठन करने का निर्देश दे जो इन प्लेटफार्म पर अश्लीलता को रोकने के लिए दिशानिर्देश तय करे.
शुरु में जस्टिस गवई ने इस याचिका को पेंडिंग रखने की इच्छा जताई. जस्टिस गवई ने कहा कि हम पर वैसे भी आरोप लग रहा है कि हम विधायिका और कार्यपालिका के काम मे दखल दे रहे है! हालांकि बाद में कोर्ट ने याचिकाकर्ता और SG की दलीलों के मद्देनजर नोटिस जारी करने का फैसला लिया.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा कार्यपालिका या विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है. जस्टिस गवई ने कहा कि जैसा कि हम पर आरोप है कि हम विधायिका और कार्यपालिका की शक्ति का अतिक्रमण कर रहे हैं. पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार को याचिका में उठाए गए मुद्दे पर कुछ करना चाहिए.
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. मेहता ने कहा कि सरकार इस याचिका को अन्यथा नहीं ले रही है, मेरी चिंता इस बात को लेकर है कि बच्चे भी इससे प्रभावित हो रहे है. इन प्रोगाम की भाषा न केवल अश्लील है, बल्कि विकृत है. दो पुरुष भी इसे एक साथ बैठकर नहीं देख सकते. सिर्फ ये शर्त लगाई गई है कि 18 साल से ज़्यादा उम्र वाले के कंटेंट है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बच्चों की पहुंच इस कंटेंट तक नहीं है. इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि हमने भी देखा कि बच्चों की बिजी रखने के लिए माता पिता उन्हें फोन देते है.
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि इस संबंध में कुछ नियम मौजूद हैं जबकि कुछ और पर विचार किया जा रहा है. याचिकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन पेश हुए. शीर्ष अदालत पांच याचिकर्ताओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यौन रूप से स्पष्ट सामग्री को प्रतिबंधित करने के लिए एक राष्ट्रीय सामग्री नियंत्रण प्राधिकरण का गठन करने वाले दिशानिर्देशों की भी मांग की है.