Bhopal Gas Tragedy: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्राधिकारियों से कहा कि वे उसे मध्य प्रदेश के धार जिले के पीथमपुर क्षेत्र में 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के खतरनाक अपशिष्ट के निपटान के संबंध में बरती गई सावधानियों के बारे में अवगत कराएं. याचिका में स्थानीय निवासियों की स्वास्थ्य संबंधी याचिकाओं को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से ये भी कहा कि वे याचिका को पढ़े और कोई ठोस आपत्ति जताई गई हो, तो उसके बारे में अवगत कराएं.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब अपशिष्ट के निपटान से संबंधित एक याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए उसके समक्ष लाया गया. शीर्ष अदालत ने 17 फरवरी को केंद्र, मध्य प्रदेश सरकार और उसके प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से उस याचिका पर जवाब मांगा था, जिसमें निपटान स्थल से एक किलोमीटर के दायरे में स्थित गांवों के निवासियों के जीवन और स्वास्थ्य को इससे होने वाले कथित खतरे का मुद्दा उठाया गया था.
मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध करते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 18 फरवरी को राज्य को 27 फरवरी से कचरे के निपटान का परीक्षण करने की अनुमति दी थी. उन्होंने पीठ से आग्रह किया कि इस मामले पर 27 फरवरी तक शीर्ष अदालत में सुनवाई की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस आग्रह को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई की.
पीठ ने कहा,
‘‘जब तक आशंकाएं ठोस नहीं पायी जातीं, तब तक हम इसे रोकने नहीं जा रहे हैं.’’
पीठ ने कहा कि अधिकारियों को याचिका का अध्ययन करना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई चिंता में कोई दम है या नहीं. पीठ ने कहा कि अगर याचिका में उठाई गई चिंता में कोई दम है, तो यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि अधिकारियों द्वारा क्या कदम उठाए जा रहे हैं. पीठ ने कहा कि हमें बताएं कि आपने सभी सावधानियां बरती हैं.
पीठ ने यह भी कहा कि आमतौर पर अगर सुप्रीम कोर्ट के पास मामला होता है तो उच्च न्यायालय को इस मामले में अपना हाथ नहीं बढ़ाना चाहिए. अब बंद हो चुकी यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के लगभग 377 टन खतरनाक कचरे को भोपाल से 250 किलोमीटर और इंदौर से लगभग 30 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में एक संयंत्र में निपटान के लिए ले जाया गया था, जिसे लेकर स्थानीय लोगों ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए कचरे के निपटारे पर रोक लगाने की मांग की है.
दो-तीन दिसंबर, 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से अत्यधिक जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) लीक हुई थी, जिसमें 5,479 लोग मारे गए थे और पांच लाख से अधिक लोग अपंग हो गए थे। इसे दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है। शीर्ष अदालत ने 17 फरवरी को उच्च न्यायालय के तीन दिसंबर 2024 और इस साल छह जनवरी के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की थी। उच्च न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद भोपाल में यूनियन कार्बाइड साइट को खाली नहीं करने के लिए अधिकारियों को फटकार लगाई थी और कचरे को स्थानांतरित करने के संबंध में चार सप्ताह की समय सीमा तय की थी। उच्च न्यायालय ने सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर उसके निर्देश का पालन नहीं किया गया तो उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाएगी। एक अधिकारी ने बताया कि एक जनवरी की रात को 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में जहरीले कचरे को निपटान के लिए ले जाने की प्रक्रिया शुरू हुई.
(खबर एजेंसी इनपुट पर आधारित है)