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'हमें अपने संस्थानों के प्रति भरोसा रखनी चाहिए', CAG नियुक्ति के लिए स्वतंत्र समिति की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने 'केन्द्र' से मांगा जबाव

सुप्रीम कोर्ट में दायर इस जनहित याचिका में मांग की गई है कि CAG की नियुक्ति एक स्वतंत्र समिति द्वारा की जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों. शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी करते हुए केन्द्र सरकार से इस पर जबाव देने को कहा है.

CAG, Supreme Court

Written by Satyam Kumar |Updated : March 17, 2025 3:33 PM IST

Comptroller and Auditor General (CAG) Appointment: सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र और तटस्थ तरीके की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. इस जनहित याचिका (PIL) में यह निर्देश मांगा गया कि CAG की नियुक्ति एक स्वतंत्र समिति द्वारा की जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) शामिल हों. सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) द्वारा दायर जनहित याचिका में दावा किया गया कि वर्तमान प्रणाली, जिसमें केंद्र सरकार केवल CAG का चयन करती है, उसकी स्वतंत्रता को बाधित करती है.

अपने संस्थानों पर भरोसा रखना चाहिए: SC

सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका को सुनवाई के लिए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ के सामने लाया गया. जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि क्या हाल के वर्षों में CAG की स्वतंत्रता को संदेह में डालने वाला कोई कार्य हुआ है या संस्था अपने कार्य से इतर रही है. इस पर सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण, जो CPIL की ओर से पेश हुए, ने कहा, हाल के समय में, CAG ने अपनी स्वतंत्रता खो दी है. सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने बताया कि CAG की रिपोर्टों की संख्या कम हो रही है और स्टाफ की संख्या भी घट रही है. उन्होंने कहा कि भाजपा द्वारा शासित राज्यों के ऑडिट में बाधा उत्पन्न हो रही है, जिसे उन्होंने दुखद कहा. इस दावे को सिद्ध करने के लिए महाराष्ट्र का उदाहरण दिया.

सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने CBI निदेशक और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्तियों के संबंध में स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप किया है, और CAG के लिए भी इसी तरह के निर्देश आवश्यक हैं. प्रशांत भूषण ने कहा, "अगर नियुक्तियां सरकार द्वारा नियंत्रित होती हैं, तो उनकी स्वतंत्रता बाधित होगी."

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इस पर जस्टिस कांत ने जबाव दिया, "हमें अपने संस्थानों पर भी विश्वास करना चाहिए." जस्टिस ने संविधान के अनुच्छेद 148 का उल्लेख किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि CAG को सुप्रीम कोर्ट के जज के समान कार्यालय से हटाने के लिए सुरक्षा दी गई है. जजों को संसद द्वारा महाभियोग प्रस्ताव के बाद ही हटाया जा सकता है. इस पर प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया, "क्या केवल हटाने के खिलाफ सुरक्षा स्वतंत्रता की गारंटी देने के लिए पर्याप्त है?" उन्होंने बताया कि हालांकि चुनाव आयुक्तों को भी समान सुरक्षा दी गई है, सुप्रीम कोर्ट ने इसे उनकी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपर्याप्त पाया और इसलिए निर्देश पारित किए गए (अनूप बरनवाल मामले में). सुप्रीम कोर्ट ने अनूप बरनवाल वर्सेस भारत संघ एवं अन्य में फैसला दिया है कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सीजेआई को शामिल करना आवश्यक है. हलांकि, संसद ने इस फैसले को कानून बनाकर पलट दिया है, और इस फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

जस्टिस कांत ने यह भी टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनाव आयोग के संबंध में संवैधानिक प्रावधान काफी अलग हैं, क्योंकि यह निर्दिष्ट किया गया है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार की जाएंगी. जस्टिस ने आगे कहा कि "जब संविधान का अनुच्छेद 148 स्पष्ट रूप से राष्ट्रपति को CAG की नियुक्ति का अधिकार देता है, तो क्या अदालत एक अलग प्रक्रिया को निर्दिष्ट करने के लिए हस्तक्षेप कर सकती है?"

जस्टिस कांत ने कहा कि, "जहां संविधान ने नियुक्ति का अनियंत्रित अधिकार प्रदान किया है, क्या और किस हद तक अदालत को शक्ति है कि वे इन प्रावधानों को लिख सकती है?"  इसके बाद, अदालत ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए इस मांग पर जबाव देने की मांग की है.

अन्य समान याचिकाएं भी टैग्ड

पीठ ने इस याचिका को एक अन्य याचिका के साथ टैग किया, जिसमें समान राहत की मांग की गई थी. जस्टिस कांत ने यह भी कहा कि इस मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुना जाना आवश्यक है. इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि यहां तक कि एक संविधान पीठ भी इस मामले को सुन सकती है.