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अब्बास अंसारी के खिलाफ Gangster Act में जांच का आदेश वापस, जमानत याचिका पर फैसला लेने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने UP Police से मांगी ये रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के विधायक अब्बास अंसारी के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत दस दिनों के भीतर जांच पूरी करने का पुलिस को निर्देश देने वाला अपना पिछला आदेश वापस ले लिया है.

अब्बास अंसारी, सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : February 22, 2025 11:36 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना वह आदेश वापस ले लिया जिसमें पुलिस को गैंगस्टर अधिनियम (Gangster Act) के तहत उत्तर प्रदेश के विधायक अब्बास अंसारी के खिलाफ जांच 10 दिन के भीतर पूरी करने को कहा गया था. अदालत ने इसके बजाय पुलिस से यह जानना चाहा कि क्या विधायक के खिलाफ कोई जांच लंबित है. दिवंगत गैंगस्टर मुख्तार अंसारी के बेटे अंसारी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि जांच पूरी हो गई है और उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के तहत मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है.

दस दिनों के भीतर जांच करने का आदेश वापस

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए छह मार्च की तारीख तय की. सिब्बल ने कहा कि राज्य ने मामले में गलत हलफनामा दाखिल किया है और अंसारी के खिलाफ कोई मामला लंबित नहीं है.

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने कहा कि उन्हें इस मामले पर और स्पष्टीकरण की आवश्यकता है. सिब्बल ने कहा कि राज्य ने अपने हलफनामे में गलत जानकारी दी है कि चार सह-आरोपी फरार हैं, जबकि मामले में आरोपपत्र के अनुसार कोई अन्य आरोपी नहीं है. इसके बाद, पीठ ने दिन में पहले पारित आदेश को वापस ले लिया तथा राज्य सरकार से जांच की स्थिति बताते हुए एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा. दिन में पीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस को ‘गैंगस्टर अधिनियम’ के तहत अंसारी के खिलाफ मामले की जांच 10 दिन के भीतर पूरी करने का निर्देश दिया था. पीठ ने कहा था कि मामले की जांच पूरी होने के बाद वह अंसारी की जमानत याचिका पर विचार करेगी. जमानत याचिका उस मामले से जुड़ी है जिसमें अंसारी पर राज्य के चित्रकूट जिले में कथित तौर पर एक गिरोह संचालित करने का आरोप है.

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जमानत याचिका पर पेश करने की मांग

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे पर भरोसा किया था, जिसमें कहा गया था कि मामले में जांच जारी है और जांच अधिकारी ने कहा है कि उसे जमानत पर रिहा करना जांच के लिए ठीक नहीं होगा. पीठ ने अधिकारी की इस दलील का हवाला दिया कि अंसारी एक जेल अधिकारी को रिश्वत देने में कामयाब हो गया है और अगर उसे जमानत पर रिहा किया गया तो वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है. अंसारी ने मुठभेड़ के डर से 31 जनवरी को ‘गैंगस्टर’ अधिनियम के तहत एक मामले में अधीनस्थ अदालत की कार्यवाही में डिजिटल माध्यम से पेश होने का अनुरोध किया था. अंसारी ने दलील दी थी कि वह कासगंज की जेल से डिजिटल माध्यम से अदालत में पेश हो रहा था, लेकिन बाद में यह सुविधा बंद कर दी गई.

शीर्ष अदालत ने अंसारी की जमानत याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था. अदालत ने डिजिटल माध्यम से सुनवाई की याचिका इस आधार पर खारिज कर दी कि याचिका में कोई इस बारे में कोई अनुरोध नहीं किया गया है. अदालत ने सिब्बल से कहा कि वह याचिका लेकर उच्च न्यायालय जाएं. पिछले साल 18 दिसंबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में अंसारी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी.

क्या है मामला?

चित्रकूट जिले के कोतवाली कर्वी थाने में 31 अगस्त, 2024 को अंसारी, नवनीत सचान, नियाज अंसारी, फराज खान और शाहबाज आलम खान के खिलाफ उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एवं असामाजिक क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम, 1986 की धारा दो, तीन के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उन पर जबरन वसूली और मारपीट का आरोप लगाया गया था. अंसारी मऊ निर्वाचन क्षेत्र से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के विधायक हैं. जमानत याचिका खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि मामले में जांच जारी है। इस मामले में अंसारी को छह सितंबर, 2024 को गिरफ्तार किया गया था.

(खबर पीटीआई इनपुट से है)