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अब महीने भर के अंदर दस लाख देगी बंगाल सरकार, 18 साल बाद रिटायरमेंट का पैसा नहीं पाने वाले सरकारी कर्मचारी को SC से बड़ी राहत

पूर्व सरकारी कर्मचारी, जो 2007 में सेवानिवृत्त हुए थे, को 18 वर्षों तक उनकी सेवानिवृत्ति की राशि का भुगतान नहीं किया गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को पूर्व सरकारी कर्मचारी को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है.

Written by Satyam Kumar |Published : February 20, 2025 2:45 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को 10 लाख रुपये देने का आदेश दिया है. साल 2007 में रिटायर हुए इस सरकारी कर्मचारी को 18 साल तक रिटायरमेंट की राशि नहीं मिली, उसे सरकार की ओर केवल एक अनंतिम पेंशन (Provisional Pension) दिया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की देरी से की गई याचिका को खारिज करते हुए कहा कि  सरकार चार सप्ताह के भीतर सभी लंबित बकाया राशि का भुगतान करें.

चार सप्ताह के अंदर कर्मचारी का पूरा बकाया दे सरकार

जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह पूरी तरह से तुच्छ और परेशान करनेवाली याचिका है जो पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर की गई है. उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया था.

पश्चिम बंगाल सरकार ने विशेष अनुमति याचिका 391 दिनों की देरी से दायर की थी. सरकार की ओर से इस देरी के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. कोर्ट ने मामले के तथ्यों पर विचार किया और पाया कि कर्मचारी को रिटायरमेंट के 18 साल होने के बाद भी उसे रिटायरमेंट राशि नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 18 वर्षों बाद भी रिटायरमेंट की राशि नहीं मिली. कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को चार सप्ताह यानि एक महीने के भीतर सभी लंबित रिटायरमेंट दावों का भुगतान करने का आदेश दिया.

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क्या है मामला?

इस मामले में, 1994 में याचिकाकर्ता को अनुशासनात्मक जांच के बाद बरी कर दिया गया था. हालांकि, 1997 में एक शो-कॉज नोटिस जारी किया गया, जिसमें उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव किया गया था. इसके बाद, 13 साल बाद, 2010 में एक दूसरा शो-कॉज नोटिस जारी किया गया. याचिकाकर्ता ने ट्रिब्यूनल में अपील की, जिसने नियोक्ता को अनुशासनात्मक कार्यवाही में अंतिम निर्णय लेने का निर्देश दिया. याचिकाकर्ता ने फिर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया.