नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों को जमानत के मामलों में उचित प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश दिया है. यह आदेश हाई कोर्ट द्वारा जमानत का निर्णय देते समय जमानत आदेश में अनियमितताएं और किसी भी स्थिर प्रारूप का पालन नहीं किये जाने के संदर्भ में दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते एक जमानत मामले की सुनवाई करते हुए सभी 25 उच्च न्यायालयों को उचित प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश दिया था.
वर्तमान मामला एक विशेष अवकाश याचिका की अपील का था जिसमें याचिकाकर्ता ने पटना हाई कोर्ट के उसकी अग्रिम जमानत की याचिका खारिज करने के खिलाफ अपील दायर की थी. याचिकाकर्ता पर उसकी पत्नी के अपहरण, गलत तरीके से कैद करने और बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था जिससे वह कुछ समय के लिए अलग हो गया था.
हालांकि जांच की अंतिम रिपोर्ट में उस पर किसी भी अपराध का आरोप नहीं लगाया गया और यह बताया गया कि वह किसी भी अपराध में शामिल नहीं था जबकि हाई कोर्ट के आदेश में भी उन अपराधों का कोई उल्लेख नहीं था जिनके लिए आरोपी के खिलाफ केस दर्ज किया गया था.
जस्टिस एस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने मामले में सभी तथ्यों पर विचार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए और अदालत ने उसे ट्रायल कोर्ट की शर्तों पर अग्रिम जमानत देने का आदेश दिया.
मामले का निस्तारण करने से पहले, अदालत ने कहा कि जमानत आदेश देते समय हर हाई कोर्ट का अलग प्रारूप होता है और कई मामलों में,आदेशों में ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित कार्यवाही का कोई विवरण नहीं होता है या कभी-कभी FIR में अपराध की प्रकृति का उल्लेख नहीं होता है.
कोर्ट ने निर्देश दिया कि प्रत्येक जमानत/अग्रिम जमानत के आदेश में उचित प्रारूप में सभी महत्वपूर्ण बातों जैसे एफआईआर नंबर, तारीख, संबंधित पुलिस स्टेशन और कथित रूप से किए गए अपराध आदि का उल्लेख होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने अंत में इस आदेश को देश के सभी उच्च न्यायालयों में प्रसारित करने के निर्देश जारी किया.