हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम,2005 हर महिला पर लागू होता है, चाहे वह महिला किसी भी धर्म की हो या किसी भी समाजिक परिपाटी से आती हो (Supreme Court on Domestic Violence Act, 2005). बता दें कि इस मामले में महिला ने, अपनी पति की गुजारा भत्ता की राशि में संशोधन करने की मांग को, चुनौती दी है. हालांकि महिला की इस याचिका को कर्नाटक हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी, जिसके अपील में महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिस्वर की पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा से निपटने के लिए घरेलु हिसा अधिनियम, 2005 कानून हर महिला के अधिकार की रक्षा करता है. सुप्रीम कोर्ट ने महिला की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि पीड़ित व्यक्ति अधिनियम के तहत दिए गए आदेश में परिवर्तन या संशोधन की मांग कर सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब परिस्थितियों में बदलाव हुआ हो.
सुप्रीम कोर्ट ने महिला की मांग को बरकरार रखा.
गुजारा भत्ता और मुआवजा देने से जुड़े इस मामले में पत्नी ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत एक याचिका दायर की, मामले में ट्रायल कोर्ट ने पति को परिस्थितियों के आधार बनाते हुए महिला को 12 हजार रूपये महीना व एक लाख रूपये मुआवजा देने के आदेश दिए. पति ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 25 के तहत इस राश में संशोधन करने की मांग को लेकर फैमिली कोर्ट के फैसले को मजिस्ट्रेट कोर्ट में चुनौती दी, अदालत ने दोनों पक्षों को सबूत के साथ अपने हाजिर होने को कहा.
अब महिला ने पति की इसी याचिका का विरोध करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे कर्नाटक हाईकोर्ट ने खारिज किया और सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि गुजारा भत्ता में संशोधन करने की मांग तभी की जा सकती है जब असल परिस्थितियों में कुछ बदलाव हो.