हाल ही में सुप्रीम कोर्ट जस्टिस बीआर गवई केन्या दौरे पर है. केन्या में एक समारोह के दौरान उन्होंने कहा कि अदालतों में सुनवाई के छोटे-छोटे क्लिप्स का सोशल मीडिया पर प्रसार हो रहा है, जो कानूनी प्रक्रियाओं को सनसनीखेज बनाने के लिए किया जा रहा है. जस्टिस ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इन क्लिप्स को संदर्भ (Context) से बाहर निकालकर शेयर किया जाता है, जिससे गलतफहमियां और गलत रिपोर्टिंग का खतरा बना रहता है. जस्टिस गवई ने कहा कि क्लिपिंग्स को आउट ऑफ कॉन्टेक्सट शेयर करने की आदत, एक उभरती हुई समस्या है और इसे न्यायपालिका को लाइव-स्ट्रीमिंग के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता हो सकती है. जस्टिस ने कहा कि हमारे अनुभव से, सोशल मीडिया पर अदालतों की सुनवाई के छोटे क्लिप्स का प्रसार हो रहा है, जो अक्सर प्रक्रियाओं को सनसनीखेज बनाते हैं.
जस्टिस गवई ने कहा कि तकनीक ने न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार किया है, लेकिन इसके साथ ही कई नैतिक चिंताएँ भी उत्पन्न हुई हैं। उन्होंने बताया कि दुनिया भर के अदालतों ने तकनीक को अपनाया है ताकि कार्यक्षमता में सुधार हो सके और न्याय तक पहुँच बढ़ाई जा सके. जस्टिस गवई ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के उपयोग पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि AI कानूनी शोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन इसके उपयोग में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। "AI बड़ी मात्रा में कानूनी डेटा को संसाधित कर सकता है, लेकिन यह मानव स्तर की विवेकशीलता के साथ स्रोतों को सत्यापित नहीं कर सकता है.
जस्टिस गवई ने यह भी सवाल उठाया कि क्या एक मशीन, जो मानव भावनाओं और नैतिक तर्क से रहित है, वास्तव में कानूनी विवादों की जटिलताओं को समझ सकती है. उन्होंने कहा कि नैतिक विचार, सहानुभूति और संदर्भीय समझ ऐसे तत्व हैं जो एल्गोरिदम की पहुंच से परे हैं. जस्टिस गवई ने बताया कि तकनीक ने केस प्रबंधन को क्रांतिकारी तरीके से बदल दिया है. पारंपरिक कागजी रिकॉर्ड्स को डिजिटल सिस्टम में बदल दिया गया है, जिससे मामलों का वास्तविक समय में ट्रैकिंग और सुनवाई की स्वचालित अनुसूची संभव हो गई है. उन्होंने कहा कि AI-संचालित अनुसूची उपकरणों को केस प्रबंधन सिस्टम में जोड़ा गया है.
भारतीय न्यायपालिका ने कोर्ट की प्रक्रियाओं के लिए हाइब्रिड वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग को अपनाया है, जिससे न्याय प्रणाली में अधिक पहुंच और कार्यक्षमता में सुधार हुआ है. जस्टिस गवई ने कहा कि अब देश के किसी भी हिस्से से वकील अदालतों के सामने अपने तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं, भौगोलिक बाधाएं समाप्त हो गई हैं. जस्टिस गवई ने बताया कि पारंपरिक रूप से वकीलों और वादियों को उच्च न्यायालयों में उपस्थित होने के लिए काफी यात्रा करनी पड़ती थी, जो विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती थी. वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वकील अब देश के किसी भी कोने से अपने मामले पेश कर सकते हैं. जस्टिस गवई ने कहा कि संविधानिक मामलों की लाइव-स्ट्रीमिंग की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट के लिए एक बड़ा कदम है, जो न्याय की पहुंच को बढ़ाने और न्यायिक प्रक्रियाओं के ट्रांसक्रिप्शन और निर्णयों के अनुवाद के माध्यम से व्यापक पहुँच सुनिश्चित करता है.