सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर आश्चर्य व्यक्त किया जहां एक महिला को जादू टोना करने के आरोप में सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित और निर्वस्त्र किया गया. शीर्ष अदालत ने कहा कि 21वीं सदी में ऐसे कृत्य का होना एक कठोर सच्चाई है, जिसने इस अदालत की आत्मा को हिलाकर रख दिया है. सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करनेवाली याचिका पर आई, जिसमें एक महिला को जादूगरनी बताकर सार्वजनिक रूप से उसे निवस्त्र करने का प्रयास किया गया था और पटना हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच पर रोक लगा दी थी, जिसे अपीलकर्ता (शिकायतकर्ता) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जिस तरह के आरोप के लगाए गए हैं, उसने इस अदालत की आत्मा को हिलाकर रख दिया है.
अदालत ने कहा,
"गरिमा, समाज में एक व्यक्ति के अस्तित्व से जुड़ा है. अगर किसी व्यक्ति की गरिमा से समझौता किया जाता है, तो संविधान, कानून या अंतरराष्ट्रीय कानूनों के आधार पर उसे मिले अधिकार, मानव होने के नाते मिले अधिकार पर प्रश्नचिन्ह उठाते हैं."
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने राज्य की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने हाईकोर्ट के जांच पर रोक लगाने के फैसले को चुनौती क्यों नहीं दी. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि राज्य को किसी भी मुद्दे पर मुकदमा करने का निर्णय केवल वित्तीय लाभ पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि राज्य को न्याय और कानून के शासन की रक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी को दर्शाना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने पुलिस के रवैये को नोट करते हुए कहा कि पहले तो पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया, जिससे शिकायतकर्ता को सीआरपीसी की धारा 156(3) तहत मजिस्ट्रेट के पास जाना पड़ा.
यह मामला मार्च 2020 में बिहार के चंपारण जिले में एक घटना हुई थी, जहां 13 व्यक्तियों पर अपीलकर्ता (शिकायतकर्ता) की दादी पर हमला करने का आरोप लगाया गया. उसने दावा किया कि आरोपियों ने उसकी दादी पर जादू-टोना करने का आरोप लगाते हुए कहा कि 'जादूगरनी' को बिना कपड़ों के परेड कराना चाहिए और इसके बाद उन्होंने उसकी साड़ी फाड़ दी. अपीलकर्ता के अनुसार इस दौरान महिला को बचाने गई एक अन्य महिला पर भी आरोपियों ने हमला किया.