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छत्तीसगढ़ आबकारी मामले में पूर्व अधिकारी को जमानत तो दी, लेकिन SC ने रिहाई को इस वजह से लटका दिया

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले से जुड़े पूर्व आबकारी अधिकारी को जमानत देते हुए 10 अप्रैल, 2025 को कुछ खास शर्तों के तहत रिहा करने का आदेश दिया है.

Written by Satyam Kumar |Updated : March 9, 2025 4:42 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के एक पूर्व आबकारी अधिकारी को राज्य के बहुचर्चित शराब घोटाले से जुड़े धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के एक मामले में जमानत दे दी है. हालांकि, शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि अधिकारी को 10 अप्रैल को रिहा किया जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रकरण की जारी जांच प्रभावित न हो. भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें राज्य में शराब घोटाले के मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था.

अप्रैल में सशर्त होगी रिहाई

जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि आरोपी अरुण पति त्रिपाठी लगभग 11 महीने से हिरासत में है और निकट भविष्य में मुकदमा शुरू होने की कोई संभावना नहीं है.

पीठ ने कहा,

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"संबंधित आदेश में हमारे द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करते हुए, अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा होने का अधिकार है। हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि जांच किसी भी तरह से प्रभावित न हो, हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता को संबंधित सत्र न्यायालय द्वारा तय उचित नियमों और शर्तों के अधीन 10 अप्रैल, 2025 को जमानत पर रिहा किया जाएगा."

शीर्ष अदालत ने त्रिपाठी को निर्देश दिया कि वह अपना पासपोर्ट जांच अधिकारी के पास जमा कराएं और प्रतिदिन सुबह 10 बजे उसके समक्ष उपस्थित हों.

पीठ ने कहा,

"जब तक आरोपपत्र दाखिल नहीं हो जाता, वह जांच अधिकारी के साथ सहयोग करना जारी रखेंगे. जमानत देने का आदेश पारित करने के लिए अपीलकर्ता को 10 अप्रैल, 2025 को उपयुक्त सत्र अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा। सत्र अदालत अपीलकर्ता को उपरोक्त नियमों और शर्तों सहित उचित नियमों एवं शर्तों पर जमानत देगा."

क्या है मामला?

कथित घोटाले के समय छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम लिमिटेड के विशेष सचिव और प्रबंध निदेशक के रूप में त्रिपाठी प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे थे और ईडी की जांच के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रायपुर पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की कई धाराओं के तहत दर्ज एक मामले के आधार पर अपनी जांच शुरू की थी.

(खबर पीटीआई इनपुट से है)