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Bilkis Bano Case: दोषियों ने अंतरिम जमानत की मांग को लेकर दायर की याचिका, सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से ही किया इंकार

सुप्रीम कोर्ट ने दो दोषियों की याचिका पर सुनवाई से इंकार करते हुए कहा कि जब तक कि शीर्ष अदालत के 8 जनवरी के दिन छूट खारिज करने के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी याचिकाओं पर फैसला नहीं आ जाता, तब तक उन्हें किसी प्रकार की राहत नहीं दी जा सकती है.

Bilkis Bano Case

Written by Satyam Kumar |Published : July 19, 2024 2:58 PM IST

Bilkis Bano's Convicts Interim Bail Plea:  शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने  बिलकिस बानो मामले में दो दोषियों की अंतरिम जमानत याचिका पर विचार करने से इनकार किया है. सुनवाई से इंकार करने के फैसले में कहा कि जब तक कि शीर्ष अदालत के 8 जनवरी के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी याचिकाओं पर फैसला नहीं आ जाता, तब तक उन्हें किसी प्रकार की राहत नहीं दी जा सकती है. बता दें सुप्रीम कोर्ट ने पहले दोषियों की रिहाई रद्द करते हुए उन्हें वापस से सरेंडर करने के निर्देश दिए थे.

SC ने सुनवाई से किया इंकार, तो दोषियों ने अंतरिम जमानत ली वापस

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और पीवी संजय कुमार की पीठ द्वारा उनकी याचिका पर सुनवाई करने इंकार करने के बाद दोषियों की ओर से पेश हुए वकील ने याचिका वापस ले ली है.

पीठ ने दोषियों के वकील से पूछा,

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"यह याचिका क्या है? यह कैसे स्वीकार्य है? बिल्कुल गलत है. अनुच्छेद 32 के तहत हम अपील पर कैसे विचार कर सकते हैं?"

अदालत के बाद टिप्पणी करने के बाद दोषियों के वकील ने याचिका वापस ले ली है.

पूरा मामला क्या है?

8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों को छूट देने के गुजरात सरकार के आदेश को खारिज कर दिया था.

मार्च में दो आरोपियों, राधेश्याम भगवानदास शाह और राजूभाई बाबूलाल सोनी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसमें जेल से उनकी समयपूर्व रिहाई के मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का आग्रह किया गया था, क्योंकि मामले में दो अलग-अलग पीठों ने अलग-अलग आदेश पारित किए थे.

उन्होंने कहा था कि शीर्ष अदालत का 8 जनवरी का फैसला, जिसके कारण छूट और पुनः कारावास रद्द कर दिया गया, न्यायिक रूप से अनुचित था. अपनी याचिका में, उन्होंने उल्लेख किया है कि समान संख्या में न्यायाधीशों की दो अलग-अलग समन्वय पीठों ने मामले पर अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाया है.

इसमें कहा गया था,

"स्पष्ट निर्देश जारी करें और निर्देश दें कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में उनके समन्वय पीठ का कौन सा निर्णय लागू होगा, यानी, जो मामले में दिया गया है,"

ANI की रिपोर्ट के अनुसार याचिका में जस्टिस बीवी  नागरत्ना और उज्जल भुयन द्वारा दिए गए 8 जनवरी का फैसला से आपत्ति जताई है.

ध्यान देने योग्य बात यह है कि न्यायमूर्ति रस्तोगी की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा 13 मई, 2022 को दिए गए निर्णय में कहा गया था कि बिलकिस बानो मामले में बलात्कार के दोषियों द्वारा दायर क्षमा आवेदन पर निर्णय लेने के लिए गुजरात राज्य (न कि महाराष्ट्र सरकार) उपयुक्त सरकार है.

इसके बाद, गुजरात सरकार ने दोषियों की क्षमा आवेदनों को अनुमति देने का निर्णय लिया. इस निर्णय को बिलकिस बानो और अन्य ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी.

इस वर्ष जनवरी में न्यायमूर्ति नागरत्ना की अगुवाई वाली पीठ ने माना था कि गुजरात सरकार छूट आदेश पारित करने के लिए सक्षम नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र सरकार है. फैसले में कहा गया कि छूट का निर्णय लेने के लिए उपयुक्त सरकार वह राज्य (इस मामले में, महाराष्ट्र) है जिसकी क्षेत्रीय सीमाओ के भीतर अभियुक्तों को सजा सुनाई जाती है, न कि वह राज्य जहां अपराध किया जाता है या अभियुक्त जेल में बंद हैं.

याचिका में कहा गया था,

"समान संख्या में न्यायाधीशों की पीठ द्वारा एक ही मुद्दे पर परस्पर विरोधी निर्णय को देखते हुए, मामले को अंतिम निर्णय और मामले के कानून और गुण-दोष पर उचित निर्धारण के लिए एक बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए."

सुप्रीम कोर्ट ने दो दोषियों की वर्तमान याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को 8 जनवरी के रिहाई और छूट रद्द करने के फैसले रद्द करने के निर्देश दिए.