सुप्रीम कोर्ट ने आज गुजरात के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. यह याचिका गुजरात के अधिकारियों के खिलाफ थी, जिन्होंने विभिन्न निर्माणों को ध्वस्त करने के निर्देशों का उल्लंघन किया था. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता को संबंधित हाई कोर्ट में जाने को कहा है. अहमदाबाद में पिछले साल दिसंबर में ध्वस्त किए गए मकानों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन होने का आरोप लगाया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2024 के फैसले का हवाला देते हुए दावा किया कि स्थानीय नगरपालिका कानूनों के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर या नोटिस की तामील की तारीख से 15 दिनों के भीतर किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए. इस मामले में ऐसा नहीं किया गया.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से पूछा कि आप हाई कोर्ट क्यों नहीं जाते? हर मामले में, हमारे लिए यहां से निगरानी करना मुश्किल होगा. वकील ने कहा कि अधिकारियों द्वारा ध्वस्त किए गए मकान निजी भूमि पर स्थित थे. पीठ ने सख्ती जताते हुए कहा हम मौजूदा याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत के समक्ष यह तर्क रखा कि अधिकारियों ने निजी भूमि पर स्थित मकानों को ध्वस्त किया है. हालांकि, पीठ ने इस मामले में सुनवाई करने की इच्छा नहीं जताई और याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय का रुख करने की सलाह दी. याचिका में आरोप लगाया गया है कि अहमदाबाद नगर निगम के अधिकारियों ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया और शीर्ष अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए तीन मकानों और एक झोपड़ी को गिरा दिया. याचिकाकर्ता ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी ने इन मकानों को ध्वस्त करने से पहले कोई पूर्व सूचना जारी नहीं की, जो कि सुप्रीम कोर्ट के बनाए दिशानिर्देशों के अनुसार अनिवार्य है.
(खबर भाषा इनपुट से भी है)