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Supreme Court ने 7 साल के मासूम के हत्यारें की मृत्यु दंड की सजा को बदला उम्रकैद में

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में आतंकी मोहम्मद आरिफ की याचिका पर ही ऐतिहासिक फैसला दिया था कि फांसी की सज़ा पाए दोषियों की पुनर्विचार याचिका ओपन कोर्ट में सुनी जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने मासूम बच्चे के हत्यारें की रिव्यू याचिका पर इसी फैसले की नजीर के तहत सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है.

Written by Nizam Kantaliya |Published : March 21, 2023 6:57 AM IST

नई दिल्ली: सात साल के बच्चे का अपहरण कर उसकी हत्या करने वाले शख्स को सुनाए गए मृत्यु दंड की सजा सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में बदल दिया है. Chief Justice of India DY Chandrachud, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ ने हत्यारे सुंदरराजन की मौत की सजा को कम करते हुए 20 वर्ष की कैद में बदल दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मोहम्मद आरिफ फैसले के आधार पर दोषी की दोषसिद्धि पर फिर से विचार करने की याचिका स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया है.

याचिकाकर्ता सुंदरराजन ने मोहम्मदआरिफ के फैसले की नजीर में रिव्यू पीटीशन दायर करते हुए फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध कियाा था. मोहम्मदआरिफ के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रिव्यू पीटीशन को खुली अदालत में सुना जाना चाहिए.

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संदेह करने का कोई कारण नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता मौत की सजा का दोषी है. हमें याचिकाकर्ता के अपराध पर संदेह करने का कोई कारण नहीं दिखता है। "दोषसिद्धि में हस्तक्षेप करने के लिए समीक्षा के तहत शक्तियों का प्रयोग करना वारंट नहीं है. हम मौत की सजा को 20 साल के कारावास में बदल रहें है."

सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही पुलिस अधिकारी कुड्डालोर के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करने का भी आदेश दिया. पुलिस अधिकारी पर आरोप है कि उसने अदालत के समक्ष गलत तथ्यों पर आधारित शपथपत्र पेश किया था.

सीजेआई की पीठ ने अवमानना नोटिस जारी करते हुए पुलिस अधिकारी से पूछा है कि क्यों ना उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को आदेश दिए है कि वह इस मामले में पुलिस अधिकारी के खिलाफ स्वप्रेणा प्रसंज्ञान से अवमानना याचिका दायर करे.

क्या है मामला

वर्ष 2009 में दोषी सुंदरराजन ने एक 7 वर्षिय बालक का अपहरण कर हत्या कर दी थी. इस मामले में ​निचली अदालत ने वर्ष 2013 में उसे मौत की सजा सुनाई.

यह मामला बाद में हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. Supreme Court ने फैसले के खिलाफ सुंदरराजन द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका में फैसला सुनाते हुए मौत की सजा को बरकरार रखा था.

इस मामले में दोषी सुंदरराजन की ओर से रिव्यू याचिका दायर की गई थी.

क्या है आतंकी मोहम्मद आरिफ का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में मोहम्मद आरिफ की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला दिया था कि फांसी की सज़ा पाए दोषियों की पुनर्विचार याचिका ओपन कोर्ट में सुनी जानी चाहिए. इससे पहले पुनर्विचार याचिका की सुनवाई जज अपने चैम्बर में करते थे.

यह पहला मामला था, जिसमें फांसी की सज़ा पाए किसी दोषी की पुनर्विचार याचिका और क्यूरेटिव याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर दोबारा सुनवाई की.

गौरतलब है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने आतंकी आरिफ की फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद 2014 में सुप्रीम कोर्ट में आतंकी आरिफ की ओर से क्यूरेटिव याचिका भी दायर की गई थी, जिसे भी खारिज कर दिया गया था. बाद में 2022 में एक ओर रिव्यू याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई, जिसे भी नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद खारिज कर दिया.

लाल किले पर आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने 22 दिसंबर 2000 को आतंकवादी हमला किया था. उस हमले में मोहम्मद को दोषी घोषित करते हुए मौत की सजा सुनाई गई थी.