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'पर्सनल फ्रीडम से ज्यादा समाजिक हित सर्वोपरी', बाल तस्करी की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट हुआ क्रोधित, जानें सुनवाई के दौरान बहुत कुछ कहा

सुप्रीम कोर्ट ने अंतर्राज्यीय मानव तस्करी के मामले में 13 आरोपियों को दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा कि बच्चे की मृत्यु पर माता-पिता को पता होता है, लेकिन चोरी हो जाने पर बच्चे का जीवन उन तस्कर के भरोसे हो जाता है, जो उसकी तनिक भी परवाह नहीं करेंगे.

सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

Written by Satyam Kumar |Published : April 15, 2025 8:24 PM IST

बाल तस्करी के मामले में 13 आरोपियों की जमानत कैंसिल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों की व्यक्तिगत आजादी से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण समाजिक हित है. आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल, पैरेंट, पुलिस-प्रशासन और देश के सभी हाई कोर्ट को हिदायत दे दी. साफ शब्दों में कहा कि बच्चे का गुमना-चोरी हो जाना कहीं ज्यादा भयावह से बच्चे के मर जाने की अपेक्षा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चे की मृत्यु पर माता-पिता को पता होता है, लेकिन चोरी हो जाने पर बच्चे का जीवन उन तस्कर के भरोसे हो जाता है, जो उसकी तनिक भी परवाह नहीं करेंगे. हॉस्पीटल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस भी अस्पताल से ऐसी घटनाएं सुनने को मिले, राज्य सरकार उसका लाइसेंस रद्द कर दें. देश के सभी हाई कोर्ट को निर्देशित करते हुए कहा कि बाल तस्करी के मामले में जमानत याचिका पर छह महीने के भीतर फैसला करें. इसके लिए अदालतें डे-टू-डे बेसिस पर सुनवाई करने को स्वतंत्र है.

पर्सनल फ्रीडम से ज्यादा समाजिक हित सर्वोपरी: SC

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने अंतर्राज्यीय मानव तस्करी के मामले में 13 आरोपियों को दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा कि भले ही व्यक्ति के जीवन में स्वतंत्रता एक अत्यंत महत्वपूर्ण मूल्य है, लेकिन यह नियंत्रित और प्रतिबंधित है और समाज का कोई भी तत्व इस तरह से कार्य नहीं कर सकता, जिससे दूसरों के जीवन या स्वतंत्रता को खतरा हो. कोर्ट ने स्वीकार किया कि व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन उसके मानस पर गहरा प्रभाव डालता है और समाज में स्वतंत्रता का पवित्रता सर्वोच्च है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को इस हद तक बढ़ावा नहीं दिया जा सकता जिससे समाज में अराजकता फैले.

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को इस हद तक बढ़ाना नहीं चाहिए कि जिससे समाज में अराजकता या अव्यवस्था उत्पन्न हो. उन्होंने यह भी कहा कि कानून और व्यवस्था का पालन करना आवश्यक है ताकि एक सभ्य वातावरण में न्याय की संभावना बनी रहे. अदालत ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यक्ति को कानून द्वारा स्वीकृत सामाजिक सीमाओं के भीतर विकसित होने की अपेक्षा की जाती है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बड़े सामाजिक हितों द्वारा सीमित किया जाना चाहिए और इसके हनन को कानून द्वारा उचित रूप से अनुमोदित किया जाना चाहिए.सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि एक व्यवस्थित समाज में, व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने की अपेक्षा होती है, जिसमें कानून और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना शामिल है. अदालत ने यह स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता का सिद्धांत निरपेक्षता के क्षेत्र में नहीं है, बल्कि यह एक सीमित सिद्धांत है.

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बच्चों की तस्करी से जुड़ा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में बच्चों की तस्करी को रोकने और इस तरह के केस से निपटने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए है. सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाई कोर्ट से कहा है कि वो निचली अदालतों को बच्चों की तस्करी से जुड़े मामलों में 6 महीने में ट्रायल पूरा करने को कहे. ऐसे मामलों की ट्रायल कोर्ट में रोज़ाना ( day to day trial) हो. कोर्ट ने साफ किया कि इन दिशानिर्देश के अमल में किसी भी तरह की लापरवाही गम्भीरता से ली जाएगी और इसे कोर्ट की अवमानना माना जाएगा. यूपी के जिस तस्करी से जुड़े मामले की सुनवाई हो रही थी. उनमें 18 केस में 13 आरोपी थे. इनमे बच्चों की खरीद फ़रोख़्त से जुड़े गैंग के अलावा, दो नर्स और बच्चे को खरीदने वाले निसंतान दम्पति शामिल है. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में बच्चों की तस्करी से जुड़े मामले में 18 आरोपी की ज़मानत खारिज करते हुए दिल्ली में बच्चों की तस्करी से गैंग की ख़बर का संज्ञान लिया.