नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक फैसले में उस महिला की सजा रद्द कर दी जिस पर 2003 में अपने पिता की हत्या का आरोप था. हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत अनजाने में महिला के खिलाफ लगाए गए पितृहत्या के अपराध के खिलाफ "भावना और पूर्वाग्रह से प्रभावित" हो गई. यह समझते हैं कि क्या था मामला.
जानकारी के अनुसार, अगस्त 2003 की रात को याची का पिता व उसके अन्य परिजन छत पर सो रहे थे. इस दौरान दो लोगों ने वहां पहुंच कर याची के पिता की हत्या कर दी थी. इस मामले में पुलिस ने पहले अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
इसके बाद पुलिस ने इस मामले में जांच आगे बढ़ाई और याची को इस मामले में आरोपी बनाया. पुलिस के अनुसार प्रेम प्रसंग के मामले में याची ने अपने साथियों के साथ मिल कर पिता की हत्या की थी, और पुलिस ने याची को गिरफ्तार कर लिया.
जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट ने इस मामले में बेटी को दोषी करार देते हुए पांच साल की सजा सुनाई थी. याचिका दाखिल करते हुए बेटी ने अदालत को बताया कि उसके पिता की 16 अगस्त 2003 को अज्ञात लोगों ने हत्या कर दी थी। इस घटना के समय याची की आयु 16 वर्ष 4 माह थी।
इसके बाद पुलिस ने याची को इस मामले में आरोपी बनाया था और जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट ने उसे दोषी करार देते हुए 2005 में पांच साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद याची ने इसके खिलाफ सेशन कोर्ट में अपील दाखिल की थी जिसे 2007 में खारिज कर दिया गया.
आरोपित का कहना है कि पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार उसकी पसंद के लड़के से उसका विवाह नहीं होने के चलते पिता की हत्या की गई थी। ऐसे में याची ने खुद को निर्दोष करार देते हुए जुवेनाइल कोर्ट व सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।
आरोपित का कहना था कि पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार उसकी पसंद के लड़के से उसका विवाह नहीं होने के चलते पिता की हत्या की गई थी। ऐसे में याची ने खुद को निर्दोष करार देते हुए जुवेनाइल कोर्ट व सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, घटना के 8-10 दिनों के बाद उसने गुरदेव सिंह नामक व्यक्ति को अतिरिक्त न्यायिक बयान दिया, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह उसके परिवार का करीबी था। कबूलनामे में उसने कथित तौर पर अपने प्रेमी गुरिंदर सिंह उर्फ गोल्डी के कहने पर अपने पिता की हत्या करने की बात स्वीकार की थी।
एक्जामिनेश-इन-चीफ में गुरदेव सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता ने उन्हें बताया कि घटना से 5-6 महीने पहले उसे एक लड़के से प्यार हो गया, जिसकी जानकारी उसके पिता मिल्खा सिंह को हुई, जिन्होंने इस संबंध पर आपत्ति जताई।
उन्होंने उसे स्कूल जाने से रोकने की कोशिश की। बाद में वह लड़के गुरिंदर सिंह से मिली और उसने कथित तौर पर उससे कहा कि वह उसे लगभग 100 की संख्या में कुछ गोलियां देगा और वह उन्हें खाने में मिलाकर परिवार के सदस्यों को दे दे। जब वे बेहोश हो जाएं तो उसे अपने दादा की बंदूक उठानी चाहिए और अपने पिता को गोली मारनी चाहिए, ऐसा गुरिंदर सिंह ने उसे बताया था.
अदालत प्रधान मजिस्ट्रेट, किशोर न्याय बोर्ड, फरीदकोट द्वारा पारित फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता द्वारा दायर अपील खारिज करने के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसे आईपीसी की धारा 302 और आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि दोनों अदालतों ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए चूक की है। याची को दोषी करार देने के लिए सबूत काफी नहीं है.
कोर्ट ने दोषी करार देने वाली जजमेंट व इससे जुड़ा अन्य रिकॉर्ड देखने के बाद कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत इस मामले में पितृ हत्या के पूर्वाग्रह से प्रभावित हो गई थी। ऐसे में हाईकोर्ट ने याची को दोषी करार देने के लिए पर्याप्त सबूतों का अभाव मानते हुए उसे संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया।
हाईकोर्ट ने दोषी करार देने वाली जजमेंट व इससे जुड़ा अन्य रिकॉर्ड देखने के बाद कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत इस मामले में पितृ हत्या के पूर्वाग्रह से प्रभावित हो गई थी। ऐसे में हाईकोर्ट ने याची को दोषी करार देने के लिए पर्याप्त सबूतों का अभाव मानते हुए उसे संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया।
साक्ष्यों में कुछ संदिग्ध विशेषताएं दिखाई दे रही हैं जो उनके (अभियोजन पक्ष) संस्करण पर संदेह पैदा करती हैं। साक्ष्य के जिन टुकड़ों पर अभियोजन पक्ष ने अपना मामला टिकाने का फैसला किया, वे इतने नाजुक हैं कि जब इस अदालत ने उनका बारीकी से और आलोचनात्मक परीक्षण किया तो वे टुकड़े-टुकड़े हो गए, जिससे पूरा ढांचा ढह गया।
दोषसिद्धि का आदेश रद्द करते हुए न्यायालय ने कहा, "उपरोक्त विश्लेषण और चर्चा के क्रम में यह न्यायालय अपरिहार्य निष्कर्ष पर पहुंचा है कि याचिकाकर्ता संदेह का लाभ पाने का हकदार है।"