नई दिल्ली: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह ऐलान किया है कि इस वित्तीय वर्ष के अंदर सरकार एक विधेयक पेश कर देगी जिसका उद्देश्य असम राज्य से बहुविवाह (Polygamy) को पूरी तरह से खत्म करना होगा। असम के सीएम ने यह भी बताया है कि राज्य सरकार बहुविवाह को खत्म करने के लिए कानून बना सकती है या नहीं, इसपर परीक्षण के लिए जिस एक्सपर्ट कमिटी का गठन हुआ था, उसने भी अपनी रिपोर्ट सरकार को सबमिट कर दी है।
बहुविवाह क्या होता है, असम में यह वैवाहिक प्रथा कितनी प्रचलित है, किन आधारों पर इसका विरोध किया जा रहा है और इसे हटाने के लिए काम क्यों किया जा रहा है, आइए इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं.
बहुविवाह (Polygamy) एक वैवाहिक संरचना है जिसमें एक पुरुष की कई पत्नियां हो सकती हैं। इस प्रथा में पुरुष एक से ज्यादा शादियां कर सकते हैं और ऐसा करने के लिए उन्हें अपनी पहली बीवी को तलाक देने की जरूरत नहीं है। इस प्रथा के तहत एक पुरुष के एक ही समय पर कई वैवाहिक साथी हो सकते हैं।
भारत में लीगल है Polygamy?
'हिंदू विवाह अधिनियम, 1955' (The Hindu Marriage Act, 1955) के लागू होने के बाद हिंदुओं, बुद्ध धर्म के लोगों और सिखों में, 'भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872' (The Indian Christians Marriage Act, 1872) के अनुसार ईसाइयों में और 'पारसी विवाह और विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1936' (The Parsis Marriage and Divorce Act, 1936) के अंतर्गत पारसियों के लिए बहुविवाह एक कानूनी अपराध है।
लेकिन इसके कुछ अपवाद हैं, मूल रूप से मुस्लिम पर्सनल लॉ में। 'मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम, 1937' (Muslim Personal Law [Shariat] Application Act, 1937) यानी मुस्लिम कानून में बहुविवाह निषिद्ध नहीं है, यह अनिवार्य नहीं है लेकिन माना भी नहीं किया गया है।
असम सरकार किन आधारों पर कर रही है इसका विरोध
असम के मुख्यमंत्री का यह कहना है कि उनका यह उद्देश्य है कि वो असम में महिला सशक्तिकरण के लिए एक ऐसा सकारात्मक ईको-सिस्टम बनाएं जिसमें जाति, पंथ या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न हो। यह कहा जा रहा है कि बहुविवाह को खत्म करने हेतु कानून की इसलिए आवश्यकता है क्योंकि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14 (Right to Equality), अनुच्छेद 15 (Non-Discrimination on the ground of Gneder) और अनुच्छेद 21 (Right to Life and Property) में निहित मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि असम देश का वो पहला राज्य है जो बहुविवाह की प्रथा को अपने स्टेट से अबॉलिश करना चाहता है। बहुविवाह को समाप्त करने हेतु कानून बनाने के लिए राज्य विधानमंडल की विधायी क्षमता के परीक्षण के लिए असम सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति (Expert Committee) का गठन किया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 12 मई, 2023 को इस समिति का गठन किया था
सेवानिवृत्त जज, न्यायाधीश रूमी कुमार फुकन (Justice Rumi Kumar Phukan) की अध्यक्षता वाली इस चार सदस्यी-समिति का काम संविधान के अनुच्छेद 25 (Article 25 of The Constitution of India) 'अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म का स्वतंत्र व्यवसाय, अभ्यास और प्रचार' के साथ, समान नागरिक संहिता के लिए राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy for the Uniform Civil Code) के संबंध में 'मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम, 1937' की जांच करना था।
असम के मुख्यमंत्री ने इस बारे में बताया कि समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सबमिट कर दी है, और उन्होंने यह कहा की राज्य सरकार बहुविवाह को समाप्त करने के लिए कानून बना सकती है. समिति का कहना है कि क्योंकि विवाह और तलाक, दोनों ही समवर्ती सूची (Concurrent List) में आते हैं, इसलिए केंद्र और राज्य, दोनों ही इन विषयों पर कानून बना सकते हैं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह पर समिति का कहना है कि बेशक मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत पॉलीगैमी मना नहीं है लेकिन यह कहीं नहीं लिखा है कि ये प्रथा अनिवार्य है। इस्लाम में क्योंकि बहुविवाह कोई अनिवार्य धार्मिक अभ्यास नहीं है, इसे माना करना संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं होगा।
समिति ने यह भी कहा है कि कुरान की 'सुरह 4:3' (Surah 4:3 of The Holy Quran) में बहुविवाह का उल्लेख किया गया है जिससे यह माना जा सकता है कि इसकी अनुमति है लेकिन इसे बढ़ावा नहीं दिया जाता है।
जैसा कि असम के मुख्यमंत्री का दावा है की इसे बिल के रूप में इसी वित्तीय वर्ष के अंदर पारित करवाने की कोशिश की जाएगी ताकि जल्द से जल्द राज्य में बहुविवाह की प्रथा को समाप्त किया जा सके।
असम सरकार ने यह भी कहा है कि वो समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का समर्थन करते हैं और अगर ऐसा हुआ कि उनके इस बहुविवाह से जुड़े कानून को लागू करने से पहले केंद्र ने यूसीसी का कानून लागू कर दिया, तो ऐसी स्थिति में वो इस कानून में जरूरी बदलाव करने को तैयार हैं।