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POCSO Act के तहत देर से शिकायत दर्ज कराने का मामला, Delhi HC ने आरोपी व्यक्ति को दी राहत

पॉक्सो की घटना की रिपोर्टिंग देरी से करने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गौर किया कि महिला खुद घरेलू हिंसा और भावनात्मक अलगाव की शिकार थी और उसे ऐसे आरोपों पर विश्वास करने में भी संदेह था. इस देरी का कारण उसका खुद का शोषण और सामाजिक-पारिवारिक समर्थन का अभाव था.

Written by Satyam Kumar |Published : April 24, 2025 6:42 PM IST

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न की देर से शिकायत दर्ज कराने के मामले में अहम फैसला सुनाया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा आघात, सदमे या सामाजिक उत्पीड़न के कारण नाबालिग के यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट करने में देरी करना POCSO अधिनियम के तहत अपराध नहीं है. हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि POCSO अधिनियम का उद्देश्य यौन अपराधों को दबाने से रोकना और बच्चे के सर्वोत्तम हित में समय पर कार्रवाई सुनिश्चित करना है. यह उन लोगों को दंडित करने के लिए नहीं है जो व्यक्तिगत कमजोरियों के बावजूद अंततः अपराध की रिपोर्ट करते हैं. कानून का, किसी दबाव या सदमे में होने की वजह से घटना की शिकायत में देरी करने को, दंडित करने का इरादा नहीं है. उक्त टिप्पणी के साथ दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला के खिलाफ मुकदमा खारिज कर दिया, जिस पर अपनी 10 वर्षीय बेटी के पिता और चचेरे भाइयों द्वारा यौन उत्पीड़न की समय पर रिपोर्ट न कराने का आरोप लगाया था.

देरी से रिपोर्टिंग करने के कारण

दिल्ली हाई कोर्ट ने मुकदमा खारिज करते हुए कहा कि POCSO कानून का उद्देश्य दबाव की स्थिति में देरी से रिपोर्ट करने को अपराध बनाना नहीं है.  जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने 21 अप्रैल को एक आदेश में कहा कि मां भी शारीरिक शोषण और भावनात्मक अलगाव की शिकार थी और उसने बहुत जोखिम उठाकर कानूनी कार्रवाई शुरू करने का साहस जुटाया. अदालत ने पाया कि महिला ने अपनी बेटी के यौन उत्पीड़न की जानकारी देरी से दी क्योंकि वह खुद घरेलू हिंसा और भावनात्मक अलगाव का शिकार थी. उस पर अपने परिवार से सामाजिक और पारिवारिक समर्थन का अभाव था और शुरुआत में उसे इस तरह के आरोपों पर विश्वास करने में भी संदेह था. अदालत ने माना कि यह एक जटिल मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया थी जो वर्षों के शोषण, निर्भरता और अस्तित्व के संघर्ष से उपजी थी.

पॉक्सो अधिनियम की धारा 21

दिल्ली हाई कोर्ट ने पोक्सो अधिनियम की धारा 21 को विस्तृत करते हुए कहा कि यौन अपराधों को दबाने से रोकने और बच्चे के हित में समय पर कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए है, न कि उन लोगों को दंडित करने के लिए जो व्यक्तिगत कमजोरियों के बावजूद अंततः अपराध की रिपोर्ट करते हैं. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आघात या सामाजिक उत्पीड़न के कारण देरी से रिपोर्टिंग को अपराध नहीं माना जा सकता.

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महिला ने अपनी बेटी के यौन उत्पीड़न की जानकारी जनवरी 2020 में दी थी, जबकि इससे पहले उसने अपने ससुराल वालों द्वारा शारीरिक उत्पीड़न की तीन शिकायतें दर्ज कराई थीं, लेकिन बेटी के यौन उत्पीड़न का कोई उल्लेख नहीं किया था. इसी को लेकर उसके पति औऱ चचेरे भाइयों ने महिला के खिलाफ पॉक्सो एक्ट की धारा 21 के तहत घटना की रिपोर्टिंग नहीं करने को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी.