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पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट Gender Stereotype पर कर रही थी सुनवाई, फिर हमारे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र हो उठा

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के, अपर्णा भट बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2021) के फैसले का जिक्र किया है. इस फैसले में जजों को अपने फैसलों में रूढ़िवादी भाषा के प्रयोग से बचने की सलाह दी गई है, जिसका पाकिस्तानी अदालत ने भी समर्थन किया है.

सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : March 30, 2025 9:05 AM IST

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय यानि हमारे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया है. मामला जेंडर स्टीरियोटाइप से जुड़ा था. आगे बढ़ने से पहले कुछ अहम पहलु है, जिस पर मैं ध्यान दिलाना चाहूंगा. एक न्यायिक सिद्धांत है, स्टेयर डिसिसिस (Legal Maxim- Stare Decisis), जिसका अर्थ है पूर्व निर्णयों के आधार पर निर्णय लेना. यह सिद्धांत समान मामलों में समान निर्णय सुनिश्चित करने में मदद करता है. दूसरा पहलू है क्षेत्राधिकार (पाकिस्तान-हिंदूस्तान) का, नीतिगत फैसले का है, जिस पद्धति में शुक्राचार्य और चाणक्य की नीतियां आती है, जो कहती है कि एक व्यक्ति को अपने मित्र और शत्रु दोनों से सीखना चाहिए. साथ ही जब पॉलिसी मेकिंग की बात आती है, तो एक देश के कानूनविद् दूसरे देशों के कायदे-कानून को पढ़ते हैं और उन समस्या से निपटने से के लिए बने इंस्ट्रूमेंट को अपने देश और स्थिति के अनुरूप लागू करते हैं.

विवाहित बेटी को भी मिलेगा अनुकंपा

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने खैबर पख्तूनख्वा सेवा न्यायाधिकरण, पेशावर के उस फैसले को पलट दिया है जिसमें कहा गया था कि विवाहित बेटी अपने पति की जिम्मेदारी बन जाती है और इसलिए, मृतक पुत्र/पुत्री कोटे में अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है. पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को तथ्यात्मक और कानूनी रूप से गलत होने के साथ-साथ गहराई से पितृसत्तात्मक बताते हुए पलट दिया. उसने कहा कि यह फैसला पुराने रूढ़िवादी विचारों को बढ़ावा देता है. इस फैसले में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के, अपर्णा भट बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2021) के फैसले का जिक्र किया है. इस फैसले में जजों को अपने फैसलों में रूढ़िवादी भाषा के प्रयोग से बचने की सलाह दी गई है, जिसका पाकिस्तानी अदालत ने भी समर्थन किया है.

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सैयद मंसूर अली शाह और जस्टिस अतहर मिनल्लाह की खंडपीठ ने कहा कि न्यायिक भाषा में लैंगिक पूर्वाग्रह संरचनात्मक भेदभाव को कायम रखता है और कानून में ही पूर्वाग्रह को शामिल करने का जोखिम पैदा करता है. इससे बचने के लिए न्यायिक और प्रशासनिक निकायों को लैंगिक संवेदनशील और लैंगिक तटस्थ भाषा अपनानी चाहिए. यह केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि गरिमा, समानता और स्वायत्तता के मूल्यों के प्रति वास्तविक तटस्थता को दर्शाता है. यह फैसला पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 27 के तहत सभी नागरिकों को गारंटीकृत गरिमा, समानता और स्वायत्तता के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

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अपर्णा भट्ट बनाम मध्य प्रदेश राज्य

अपर्णा भट्ट बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक हिंसा के मामलों में फैसलों और आदेशों में व्याप्त पितृसत्तात्मक और स्त्री-विरोधी रवैये पर गौर किया और प्रगतिशील न्यायिक लेखन के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इसके दिशानिर्देश दिए. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अदालतें बलात्कार के आरोपियों को ज़मानत देते समय रखी जा रही अजीबोगरीब शर्तों से आपत्ति जताई, जैसे पीड़िता को राखी बांधना या पीड़िता और आरोपी के बीच समझौता कराकर शादी करवाना. कुछ मामलों में आरोपियों को कोविड प्रबंधन का काम सौंपा गया या नाबालिग पीड़िता के मामले में मध्यस्थता का सुझाव दिया गया. कई बार पीड़िता के चरित्र पर सवाल उठाए गए.

  • जजों को समझौते (शादी सहित) के सुझावों से दूर रहना होगा, जमानत की शर्तों में आरोपी और पीड़िता के बीच संपर्क नहीं होना चाहिए.
  • पीड़िता को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए और उसे आरोपी के जमानत की जानकारी दी जानी चाहिए.
  • जजों को पक्षपात रहित और निष्पक्ष रहना होगा और पीड़िता के आघात को ध्यान में रखना होगा.
  • जमानत आदेशों में महिलाओं के नैतिक चरित्र, शारीरिक कमज़ोरी, निर्णय लेने की क्षमता, पारिवारिक स्थिति, विनम्रता या मातृत्व पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.
  • सभी न्यायाधीशों को लैंगिक संवेदनशीलता का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और यह न्यायिक सेवा परीक्षा का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए.

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