Advertisement

राज्यों को 1 अप्रैल 2005 तक के बकाये कर की मांग करने की छूट, खनिज अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

मिनरल माइन्स पर राज्यों को टैक्स लगाने का हक देने के बाद Supreme Court आदेश को प्रभावी बनाने की तारीख तय करते हुए कहा कि राज्य 1 अप्रैल, 2005 तक Mineral Mines पर 1 अप्रैल 2005 तक के अपने बकाये कर की मांग कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज (जिसने पिछले फैसले को खारिज करते हुए राज्यों की शक्ति को बरकरार रखा) में 2004 के फैसले के बाद के वित्तीय वर्ष को कट-ऑफ के रूप में लिया है.

सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : August 14, 2024 4:18 PM IST

रॉयल्टी टैक्स मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य खनिज माइन्स पर 1 अप्रैल 2005 तक के अपने बकाये कर की मांग कर सकते हैं. 25जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने खनिज माइन्स मामले में राज्यों को कर लगाने के अधिकार की बात कही थी, तब ये सवाल उठा कि ये फैसला कब से प्रभावी होगा. अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य 1 अप्रैल 2005 तक के अपने बकाये कर की मांग कर सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने बकाये कर की मांग करने व उस पर ब्याज लगाने की बात भी कहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा राज्य एक अप्रैल 2005 से पहले के लिए कर की मांग ना करें. उसके बाद कर चुकाने के लिए 1 अप्रैल 2026 से 12 वर्षों तक का समय दिया है. साथ ही राज्य को 25 जुलाई 2024 के पहले के कर पर ब्याज लगाने पर रोक लगाई है.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 

Also Read

More News

1. यह दलील कि खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएडीए) के फैसले को भावी प्रभाव दिया जाना चाहिए, खारिज कर दिया जाता है.

2. पिछली अवधि से उत्पन्न होने वाले परिणामों को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित शर्तों के साथ आदेश लागू करने का निर्देश दिया जाता है -

(क) जबकि राज्य MADA में निर्धारित कानून के अनुसार सूची 2 की प्रविष्टियों 49 और 50 से संबंधित अवधि के लिए कर या राजस्व लगा सकते हैं, कर की मांग 1 अप्रैल, 2005 से पहले के लेनदेन पर लागू नहीं होगी.

(b) कर की मांग के भुगतान का समय 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होने वाले 12 वर्षों की अवधि में किस्तों में बांटा  जा सकता है.

(c) 25 जुलाई, 2024 से पहले की अवधि के लिए मांग पर ब्याज और जुर्माना लगाने सभी मूल्यांकनकर्ताओं को माफ कर दिया जाएगा.

1 अप्रैल 2005 तक के ही बकाये कर की वसूली क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने बताया

CJI ने बताया कि न्यायालय ने पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज (जिसने पिछले फैसले को खारिज करते हुए राज्यों की शक्ति को बरकरार रखा) में 2004 के फैसले के बाद के वित्तीय वर्ष को कट-ऑफ के रूप में लिया है. CJI ने यह भी कहा कि वर्तमान आदेश पर केवल 8 न्यायाधीशों द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे क्योंकि न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसले से असहमति जताई थी. 25 जुलाई को, न्यायालय ने 8:1 बहुमत से माना कि राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति है.

फैसला सुनाने वाली 9 जजों की बेंच की अध्यक्षता सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने की और इसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय, अभय ओका, बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जल भुयान, एससी शर्मा और एजी मसीह शामिल थे. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद और सात सहयोगियों की ओर से फैसला लिखा. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति वाला फैसला सुनाया। फैसला सुनाए जाने के बाद, केंद्र और कुछ करदाताओं ने मांग की कि फैसले को केवल संभावित प्रभाव दिया जाना चाहिए, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाया है.