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कोई भी न्यायिक अधिकारी कानून से ऊपर नहीं, कर्तव्य में लापरवाही के परिणाम भुगतने होंगे-केरल हाईकोर्ट

मामला लक्षद्वीप के sub-judge/chief judicial magistrate के खिलाफ शिकायत से जुड़ा है जिसमें पूर्व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पर याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनके समक्ष सूचीबद्ध एक केस में उन्होंने 2015 में जांच अधिकारी के बयान में हेरफेर की थी.

Written by Nizam Kantaliya |Published : January 2, 2023 9:37 AM IST

नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने न्यायपालिका में अनुशासनहीनता से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण आदेश दिया है.

केरल हाईकोर्ट के जस्टिस पी वी कुन्नीकृष्णन ने स्पष्ट किया हमारे देश में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं हो सकता है. और ये बात न्यायिक अधिकारियों के मामले में भी लागू होती है. पीठ ने कहा कि कोई भी न्यायिक अधिकारी कानून से ऊपर नहीं, कर्तव्य में लापरवाही के परिणाम उन्हे भी भुगतने होंगे.

सभी के लिए कानून

जस्टिस पी वी कुन्नीकृष्णन ने कहा कि यदि न्यायिक अधिकारियों की ओर से कर्तव्य का कोई उल्लंघन होता है, तो संवैधानिक अदालतों को हस्तक्षेप करना चाहिए और स्थिति को नियत्रिंत करना चाहिए ताकि न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को मजबूत किया जा सके.

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पीठ ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों की आलोचना हो सकती है लेकिन यह केवल भारतीय न्यायपालिका में लोगों के अपार विश्वास के कारण है और यह विश्वास भारत की रीढ़ है.

पीठ ने कहा कि देश का कानून सभी के लिए समान है, चाहे वह मजिस्ट्रेट हो या न्यायाधीश.

सबूतों के साथ छेड़छाड़

मामला लक्षद्वीप के sub-judge/chief judicial magistrate के खिलाफ शिकायत से जुड़ा है जिसमें पूर्व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पर याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनके समक्ष सूचीबद्ध एक केस में उन्होंने 2015 में जांच अधिकारी के बयान में हेरफेर की थी.

सुनवाई के दौरान सामने आए तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने आदेश पारित करते हुए जांच होने तक मजिस्ट्रेट को निलंबित रखने का आदेश दिया. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वह अभी भी जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव के रूप में काम कर रहे हैं.

मामले के अनुसार Chief Judicial Magistrate ने जांच अधिकारी के सबूतों के साथ छेड़छाड़ करते हुए आरोपी की गैरमौजूदगी में वारंट जारी किया गया.

इसके साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट ने आईपीसी के तहत साढ़े चार साल की सजा सुनाई और अलग से भी सजा सुनाई गई. इस मामले को लेकर आरोपी पक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की.

सिस्टम के प्रति सत्यनिष्ठा जरूरी

हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हमारे देश की न्यायपालिका के प्रति आम नागरिकों का अपार विश्वास ही सबसे बड़ी ताकत है. इसलिए न्यायिक अधिकारियों को बोर्ड से ऊपर होना चाहिए.

पीठ ने कहा कि निश्चित रूप से न्यायिक अधिकारियों की आलोचना हो सकती है और वह भी इस व्यवस्था में लोगों के अपार विश्वास के कारण है. निष्पक्ष आलोचना निस्संदेह व्यवस्था में सुधार करेगी. लेकिन न्यायिक अधिकारियों को उन आलोचनाओं का जवाब देने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उन्हें सिस्टम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर ध्यान देना चाहिए और निर्णय लेने के दौरान अपनी सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता साबित करनी चाहिए.

हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति एक मजिस्ट्रेट या जज है तो भी देश का कानून सभी पर लागू होता है.

जस्टिस पी वी कुन्नीकृष्णन मार्कस ट्यूलियस के शब्दों को दोहराते हुए कहा कि एक न्यायिक अधिकारी की कलम एक शक्तिशाली उपकरण है, इसलिए इसे सावधानीपूर्वक और निष्पक्ष रूप से इस्तेमाल किया जाना चाहिए.