नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक से जुड़े एक मामले में मत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि लंबे समय तक जीवनसाथी को शारीरिक संबंध न बनाने देना एक मानसिक क्रूरता है. जानकारी के अनुसार पति ने इस आधार पर पत्नी से तलाक की मांग की थी कि उसकी पत्नी लंबे समय से उसके साथ यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं दे रही है और ना ही उसके साथ रह रही है.
इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने की अनुमति दी. साथ ही अदालत ने यह माना कि पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता है.
मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक देने की अनुमति देते हुए जस्टिस सुनीत कुमार और राजेंद्र कुमार-4 की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की.
खबरों के मुताबिक पति की ओर से हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act ), 1955 की धारा 13 के तहत तलाक याचिका फैमिली कोर्ट में दायर की गई थी. पति के इस याचिका को फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
इसके बाद पति ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का रुख कर लिया. अदालत के समक्ष पति ने कहा कि दोनों की शादी 1979 में हुई. शादी के कुछ समय बाद ही पत्नी का व्यवहार और आचरण बदल गया. पत्नी ने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया.
पति ने कोर्ट को बताया कि उसने अपनी पत्नी के बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन इसके बावजूद उसने उससे कोई संबंध नहीं बनाया. कुछ समय बाद पत्नी अपने पति से अलग अपने माता-पिता के घर में रहने लगी.
पति ने अदालत को आगे कहा कि अपनी शादी के छह महीने बाद उसने पत्नी को ससुराल वापस आने के लिए मनाने की कोशिश की. लेकिन पत्नी ने वापस आने से इनकार कर दिया.
जुलाई 1994 में गांव में एक पंचायत बैठी. पंचायत ने इस शर्त के साथ आपसी सहमति से तलाक की मंजूरी दी कि पति को अपनी पत्नी को 22000 रुपए का स्थायी गुजारा भत्ता देना होगा. इसके बाद पत्नी ने दूसरी शादी कर ली और पति ने मानसिक क्रूरता के आधार तलाक की मांग की. लेकिन वो अदालत में पेश नहीं हुई. फैमिली कोर्ट ने एकतरफा तलाक खारिज करने का आदेश दिया. फैमिली कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की थी.
कोर्ट ने दलीलें सुनने और, सबूतों को देखने के बाद कहा कि पति ने ऐसा कोई भी सबूत नहीं पेश किया है, जिससे साबित हो सके कि महिला ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन ये भी स्पष्ट है कि दोनों काफी समय से अलग रह रहे हैं और पति की ओर से पेश किए गए सबूतों का खंडन करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है
हाई कोर्ट ने यह भी माना कि फैमिली कोर्ट ने फैसले लेने में गलती की थी. इसके बाद कोर्ट ने पति को तलाक की अनुमति दी और कहा- "जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ जीवन फिर से शुरू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. पति-पत्नी को शादी में हमेशा बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ नहीं मिलता है."