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बच्चा होने या शादी करने पर भी रद्द नहीं होगा POCSO के तहत दर्ज मामला... मुंबई HC ने आरोपी पति को राहत देने से किया इंकार

बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग से रेप के आरोपी के खिलाफ FIR रद्द करने और जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत नाबालिग की सहमति या आरोपी से शादी करने और बच्चा होने का तथ्य आरोपी को बरी नहीं कर सकता.

सांकेतिक AI इमेज

Written by Satyam Kumar |Published : October 1, 2025 6:21 PM IST

मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने एक 29 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार का मामला रद्द करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल इसलिए कि आरोपी ने पीड़ित नाबालिग लड़की से शादी कर ली है और उनका एक बच्चा भी है. उसे पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोपों से मुक्त नहीं किया जा सकता.

जस्टिस उर्मिला जोशी फाल्के और जस्टिस नंदेश देशपांडे की पीठ ने आरोपी व्यक्ति और उसके परिवार द्वारा दायर अर्जी को खारिज किया. अदालत ने फैसले में पॉक्सो अधिनियम की कुछ महत्वपूर्ण प्वाइंट्स को हाइलाइट्स करते हुए कहा कि;

  •  सहमति अप्रासंगिक: आरोपी की इस दलील को खारिज कर दिया गया कि वह 17 वर्षीय लड़की के साथ सहमति से संबंध में था. कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत नाबालिगों के बीच तथ्यात्मक सहमति अप्रासंगिक है.
  • उद्देश्य की अनदेखी: हाई कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाना है.
  • शादी और बच्चा होना: हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपी की उम्र विवाह के समय 27 वर्ष थी और उसे लड़की के 18 वर्ष की होने तक इंतजार करना चाहिए था. कोर्ट ने कहा कि महज इसलिए कि लड़की ने एक बच्चे को जन्म दे दिया है. आरोपियों के अवैध कृत्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
  • पीड़िता की उम्र: अभियोजन पक्ष के अनुसार. पीड़िता की शादी 17 साल की उम्र में हुई थी और उसने बच्चे को जन्म देते समय भी 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की थी.

आरोपी और उसके परिवार के सदस्यों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS). पॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. पीड़िता ने हालांकि प्राथमिकी रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी. लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि यह FIR रद्द करने का उपयुक्त मामला नहीं है.

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