नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि केवल करार (Breach of Contract) का उल्लंघन ही धोखाधड़ी के आपराधिक मुकदमे का कारण नहीं बन सकता है और इसके लिए मामले में शुरू से ही गलत मंशा को साबित किया जाना आवश्यक होता है.
जस्टिस ए एस. ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने अनुबंध के उल्लंघन के मामले पर कहा कि वादा पूरा करने में विफलता का आरोप ही आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए दिया है जिसमें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भूमि बिक्री से संबंधित मामले में एक व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दायर एफआईआर निरस्त करने से इनकार कर दिया था.
अपील को खारिज करते हुए हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरा मामला एक दीवानी विवाद को आपराधिक विवाद में तब्दील करने से यह स्पष्ट होता है कि यह कथित रूप से भुगतान की गई राशि को वापस प्राप्त करने के लिए अपीलकर्ता पर दबाव डालने के लिए किया गया है.
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए सरबजीत कौर की ओर से अपील दायर की गई थी.
अपील में सरबजीत कौर की ओर से कहा गया कि उन्होने इस मामले में जानबूझकर कोई बेईमानी नहीं की है. लेकिन एक दीवानी विवाद को आपराधिक बनाकर उन पर दबाव बनाया जा रहा है.
अपील पर सुनवाई के बाद पीठ ने आदेश में कहा केवल करार का उल्लंघन धोखाधड़ी के आपराधिक मुकदमे की वजह नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी शुरुआत में ही धोखाधड़ी या बेइमानी साबित नहीं हो जाता. महज वादा पूरा करने में विफलता को आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं होगा.
पीठ ने कहा "आपराधिक अदालतों का इस्तेमाल बदला निकालने या दीवानी विवादों को निपटाने के लिए पक्षकारों पर दबाव बनाने के लिए नहीं किया जा सकता. जहां भी आपराधिक मामलों के कारक मौजूद होते हैं, आपराधिक अदालतों को संज्ञान लेना पड़ता है.