नई दिल्ली: राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने अपने एक आदेश में 66 वर्षीय महिला की प्रकोष्ठ की हड्डी टूट जाने की सर्जरी के कारण तथा अत्यधिक एनेस्थेटिक्स (Anesthetics) के कारण मृत्यु हो जाने के पंद्रह साल बाद, अस्पताल और सर्जन को पीड़ित महिला के परिवार को 12 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा ब्याज सहित देने की व्यवस्था दी.
2018 के राज्य आयोग (State Commission) के आदेश को बरकरार रखते हुए, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने कहा कि हालांकि लापरवाही एनेस्थेसियोलॉजिस्ट (Anesthesiologist) की थी, लेकिन अस्पताल 'प्रतिनिधि' दायित्व (Vicarious Liability) से हाथ पीछे नहीं कर सकता.
कानून में प्रत्येक व्यक्ति अपने कृत्यों के लिए जिम्मेदार है और दूसरा व्यक्ति जिसने वह कार्य नहीं किया है उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है. लेकिन इसका एक अपवाद भी है, जहां एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के कृत्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, भले ही वह घटनास्थल पर मौजूद न हो. इसे प्रतिनियुक्त दायित्व (Vicarious Liability) कहा जाता है, जिसका उल्लेख टॉर्ट कानून में है.
कोर्ट ने कहा कि सर्जरी करने से पहले, डॉक्टर को सावधानी बरतनी चाहिए थी और प्री-एनेस्थेटिक चेकअप और फिटनेस लेनी चाहिए, जो कि वह ऐसा करने में विफल रहा.
यह घटना 2008 की है, जब 66 वर्षीय महिला बेहोश थी और उसे वेंटीलेटर पर रखा गया था और 4 महीने बाद बेहोशी की हालत में उसकी मौत हो गई, जिसके बाद महिला की बेटी विवाद निवारण आयोग के पास चली गई.
उनकी याचिका को 2008 में खारिज कर दी गयी थी, जिसके बाद वह राज्य विवाद निवारण आयोग (SCDRC) का दरवाज़ा खट-खटाया, जिसने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके बाद प्रतिवादी ने NCDRC में मामले की अपील की, जहां अदालत ने SCDRC का फैसला कायम रखा.
हमारे देंश में डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा दिया जाता है क्योंकि वे लोगों की जिंदगी बचाते हैं. लोग अस्पताल और डॉक्टर के पास इस उम्मीद से जाते हैं कि वहां जाने के बाद उनकी समस्या कम होगी या फिर पूरी तरीके से ठीक हो जाएगी.
लेकिन कभी-कभी इन्ही डॉक्टर की लापरवाही के कारण मरीजों की समस्या कम होने के बदले और बढ़ जाती है. इलाज के दौरान डॉक्टर्स द्वारा किए गए लापरवाही को मेडिकल लापरवाही (Medical Negligence) कहते हैं.
मेडिकल लापरवाही कई तरह से हो सकती हैं, जैसे कि गलत बीमारी का गलत इलाज करना, सही बीमारी का देर से पता चलना, गलत सर्जरी करना, खराब सर्जरी करना, सर्जरी के दौरान शरीर के अंदर कोई वस्तु छोड़ देना, गलत दावा बताना, गलत इंजेक्शन लगाना, गलत सलाह देना आदि.
किसी डॉक्टर की लापरवाही पर एक पीड़ित आपराधिक या सिविल दोनों तरह से मुकदमा दर्ज करा सकता है. अगर किसी मामले में डॉक्टर ने अपराधिक प्रवृति से लापरवाही की है तो ऐसी स्थिती में पुलिस के समक्ष भी अपराधिक मुकदमा दर्ज किया जा सकता है.
डॉक्टर की लापरवाही के चलते अगर मरीज को शारीरिक और मानसिक रूप से परेशानी हुई है वह अपराधिक मामले की बजाए उसका मुआवजा प्राप्त करना चाहता है ऐसी स्थिती में वह उपभोक्ता अदालत या Consumer कोर्ट में भी मामला दर्ज करा सकते है.
सुप्रिम कोर्ट द्वारा चिकित्सा पेशे को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (Consumer Protection Act 1986) के तहत लाया गया है, साथ में चिकित्सा उपचार को 'सेवाओं' का नाम दिया गया है. जिसके चलते ऐसी लापरवाही पर डॉक्टर से लेकर अस्पताल के खिलाफ भी कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत की जा सकती है.
इलाज में लापरवाही के कारण अगर किसी मरीज की मृत्यु हो जाती है तो डॉक्टर के खिलाफ IPC की धारा-304A, लापरवाही के कारण मौत के तहत मुक़दमा दर्ज किया जाता है. 3
मेडिकल लापरवाही के चलते अगर किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन को खतरे में डालने का अपराध किया गया है तो ऐसी स्थिती में IPC की धारा 337 में मामला दर्ज होगा.
IPC की धारा- 338 के अनुसार अगर किसी मरीज के इलाज के दौरान डॉक्टर की लापरवाही के चलते गंभीर चोट पहुंची है तो इसके लिए इस धारा में मामला दर्ज होगा.
डॉक्टर की लापरवाही पर उपरोक्त धाराओं में दो साल तक जेल की सजा से लेकर आर्थिक जुर्माने की सजा तक दी जा सकती है.