Maharashtra Political Crisis: Supreme Court के फैसले की 15 मुख्य बाते, उद्धव इस्तीफा नहीं देते तो फिर से बनते CM!
Supreme Court की 5 सदस्य संविधान पीठ ने गुरूवार को Maharashtra Political Crisis पर अपना फैसला सुनाते हुए फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणीयां की हैं.
Written by Nizam Kantaliya|Published : May 11, 2023 4:35 PM IST
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ ने गुरूवार को Maharashtra Political Crisis पर अपना फैसला सुनाते हुए फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणीयां की हैं.
जून 2022 में एकनाथ शिंदे और उनके गुट के विधायकों ने शिवसेना से बगावत कर दी थी, जिसके बाद उद्धव ठाकरे को 29 जून, 2022 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और उनके नेतृत्व वाली एमवीए सरकार गिर गई थी. इसके अगले दिन शिवसेना के बागी गुट ने भाजपा के समर्थन से नई सरकार बनाई और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने थे.
इस मामले में दोनो ही पक्षो की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाए दायर की गयी थी. गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ ने पीठ की ओर से फैसले को पढकर सुनाया.
आईए जानते है सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ द्वारा सुनाए गए इस फैसले की 15 महत्त्वपूर्ण बातें
सीजेआई ने महाराष्ट्र के राज्यपाल को भी फटकार लगाई, सीजेआई ने कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल का पिछले साल 30 जून को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना उचित नहीं था.
महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और उनके गुट के 15 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि फिलहाल इसपर कोई भी फैसला देना जल्दबाजी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने बहुचर्चित नबाम राबिया केस के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले को 7 जजों की बड़ी पीठ को रेफर कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने उद्वव ठाकरे को फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने के मामले पर कहा कि ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया, अगर उद्धव इस्तीफा नहीं देते तो आज फैसला कुछ और होता.
तत्कालीन गवर्नर द्वारा फ्लोर टेस्ट बुलाने को असंवैधानिक मानते हुए सीजेआई ने कहा कि ‘गवर्नर के समक्ष ऐसा कोई दस्तावेज नहीं था, जिसमें कहा गया हो कि बागी विधायक सरकार से अपना समर्थन वापस लेना चाहते हैं. केवल सरकार के कुछ फैसलों में मतभेद था. गवर्नर के पास केवल एक पत्र था, जिसमें दावा किया गया था कि उद्धव सरकार के पास पूरे नंबर नहीं हैं.
सीजेआई ने कहा कि स्पीकर का शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना के व्हिप के रूप में नियुक्त करने का फैसला गैरकानूनी था.
संविधान पीठ ने वर्तमान शिंदे सरकार को राहत देते हुए कहा कि जब तक बड़ी बेंच कोई फैसला नहीं देती तब तक यथास्थिति बनी रहेगी, क्योंकि उद्धव की तत्कालीन सरकार को अब बहाल नहीं किया जा सकता.
सीजेआई ने कहा कि उद्वव ठाकरे ने मुख्यमंत्री के रूप में शक्ति परीक्षण का सामना किए बिना ही इस्तीफा दे दिया था, इसलिए सदन में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा के इशारे पर शिंदे को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना राज्यपाल के लिए उचित था.
सीजेआई ने राज्यपाल द्वारा ठाकरे को सदन के पटल पर बहुमत साबित करने के लिए बुलाने को भी अनुचित मानते हुए कहाा कि राज्यपाल के पास इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई कारण नहीं था कि ठाकरे ने सदन का विश्वास खो दिया है.
सीजेआई ने फटकार लगाते हुए कहा कि न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है.
सीजेआई ने कहा कि फ्लोर टेस्ट को किसी राजनीतिक दल के अंदरूनी विवाद या मतभेद को हल करने के लिए एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
सीजेआई ने कहा कि महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और उनके गुट के 15 विधायकों को अयोग्य ठहराने वो नहीं ले सकते हैं और इसपर स्पीकर ही फैसला ले सकते हैं. और इस मामले पर अब बड़ी बेंच फैसला करेगी.
सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं. अगर यह मान भी लिया जाए कि विधायक सरकार से बाहर होना चाहते थे, तो उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया.
सीजेआई ने कहा उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट उनके इस्तीफे को रद्द तो नहीं कर सकता है.
उद्धव अगर इस्तीफा नहीं देते तो हम राहत दे सकते थे. अब हम पुरानी स्थिति बहाल नहीं कर सकते. महाराष्ट्र में शिंदे सरकार बनी रहेगी.