आज मद्रास हाई कोर्ट ने पुलिस की प्रक्रियागत चूक का हवाला देते हुए द्रमुक के वेदासंदूर विधायक एस. गांधीराजण के खिलाफ दर्ज चुनावी रिश्वतखोरी के मामले को रद्द कर दिया है. जस्टिस जीके इलंथिरैयन ने पाया कि पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने से पहले क्षेत्राधिकार के न्यायिक मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति प्राप्त नहीं की, जो कि गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए अनिवार्य है. बता दें कि यह मामला 3 अप्रैल, 2021 को तमिलनाडु विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 171ई (रिश्वतखोरी) के तहत दर्ज किया गया था.
जस्टिस ने पाया कि बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए प्राथमिकी 'यांत्रिक रूप से' दर्ज की गई थी. जस्टिस ने कहा कि 15 जून, 2023 को दायर की गई चार्जशीट, सांविधिक सीमा अवधि से परे 1 फरवरी, 2024 को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की गई थी. साथ ही अपील में यह दावा किया गया कि सीआरपीसी के धारा 468 के अनुसार, एक साल से कम सजा वाले कथित अपराधों के लिए चार्जशीट प्राथमिकी दर्ज होने के एक साल के भीतर दाखिल की जानी चाहिए थी, लेकिन यह समय सीमा पार हो गई थी. जस्टिस ने आईपीसी की धारा 141 और 143 के तहत गैरकानूनी सभा के आरोपों को निराधार बताया और कहा कि पांच या अधिक व्यक्तियों की केवल सभा अपराध नहीं बनती है जब तक कि समूह का उद्देश्य धारा 141 में सूचीबद्ध विशिष्ट श्रेणियों के अंतर्गत न आता हो.
यह मामला एक टेलीविजन समाचार रिपोर्ट से शुरू हुआ जिसमें आरोप लगाया गया था कि गांधीराजन के पार्टी के लोगों ने 1 अप्रैल, 2021 को थोट्टनपट्टी रेलवे कॉलोनी में उनके चुनाव प्रचार के दौरान 'आरती' करने वाली महिला मतदाताओं को पैसे दिए थे. एक चुनाव फ्लाइंग स्क्वाड के प्रमुख एक ब्लॉक विकास अधिकारी ने सोशल मीडिया पर प्रसारित फुटेज देखने के बाद शिकायत दर्ज की थी.